by aries » Wed Jan 08, 2025 2:07 am
कविता और विवेक नंगे बदन एक दुसरे की बाँहों में समाये साड़ी रात सोते रहे. दोनों ने पिछली रात एक दुसरे को चोद चोद कर इतना थकाया था की जब वो एक बार सोये तो सुबह कब हुई ये पता नहीं चला. विवेक की आँख 9:30 पर खुली और वो तुरंत ब्रश करने चला गया. वापस आकर कविता के होठों पर होंठ रखे और धीरे से बोला, "बाय". विवेक अपने सामने के घर में कल ही शिफ्ट हुए पड़ोसी की बीवी रेनू से मिलने जा रहा था.
कविता को विवेक के वापस आने के लिए लगभग दो घंटे इंतज़ार करना पड़ा. विवेक को देखते ही कविता समझ गयी को वो रेनू को जम कर छोड़ कर आया है. विवेक ने उसे साड़ी आपबीती सुनाई. उसने बताय की जब वो उसके घर पहुंचा रेनू बिस्तर पर नंगी लेट कर उसका इंतज़ार कर रही थी. दोनों ने एक दुसरे पहले तो चूस चूस कर पानी निकाला फिर चोद चोद कर.
"कविता उन्होंने हमें शाम को ड्रिंक्स के लिए बुलाया है. तुम अभी भी राजी हो ना?"
कविता हंसी और बोली,
"अरे ये भी कोई पूछने की बात है... ऐसा मौका छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता."
"अच्छा एक बात - रेनू पूछ रही थी की क्या तुम्हें औरत के साथ सेक्स पसंद है"
कविता बोली ... "मुझे लगता है की ये कला भी सीखने का वक़्त आ ही गया है...."
दोनों ने बाकी का दिन शाम का इंतज़ार करते हुए ही गुज़ारा. शाम को जब वो पड़ोसियों के लिए निकलने ही वाले थे, उसके घर की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो देखा पड़ोसियों की बेटी सायरा खडी थी.
"मैंने सोचा की मैं तृषा को यहाँ कंपनी दूंगी, ताकि आप दोनों को मेरी मम्मी और पापा को ठीक से जानने का पूरा मौका मिले."
सायरा अन्दर आई. वो मिनी स्कर्ट और लो कट ब्लाउज पहने हुए थी. कविता अभी भी ऊपर तैयार हो रही थी. विवेक ने सायरा की चून्चियों को घूरा और बोला,
"ये बड़ी अच्छी बात है सायरा.. ये तो बड़ा अच्छा होगा अगर तुम और तृषा अच्छी सहेलियां बन जाओ.."
सायरा मुस्करा रही थी उसे अच्छे तरह पता था की विवेक इस समय उसके चुन्चियों को मजे ले कर घूर रहा है. वो बोली,
"मुझे पूरा यकीन है की हम दोनों बेस्ट सहेलियां बनेंगे ... क्या आप मेरे दोस्त बनेंगे
विवेक अंकल? मुंबई में मेरी कई सहेलियों के पिता लोग मेरे बड़े अच्छे दोस्त थे”
विवेक मन ही मन सोच रहा था की सायरा क्या उसे हिंट दे रही थी कि मुंबई में वो अपनी सहेलियों के पिताओं के साथ मौज कर रही थी. इस ख़याल से ही उसका लंड खड़ा हो गया. उसने सायरा की आँखों में आँखें डाल कर बोला,
"मुझसे दोस्ती करोगी सायरा?"
"ओह.. बिलकुल"
उसी समय कविता सीढ़ियों से उतारते हुए नीचे आई. उसकी ड्रेस बहुत ही सेक्सी थी, विवेक और सायरा जैसे कविता को घूरते जा रहे थे. तृषा कविता के पीछे पीछे आई और कविता की ड्रेस का बिलकुल ध्यान न देते हुए उसने सायरा का हाथ पकड़ा और अपने ऊपर कमरे में चली गयी.
कविता और विवेक हाथों में हाथ डाले जब पड़ोसियों के यहाँ पहुचे, गौरव और रेनू दोनों ने बड़े ही खुशी से उसका दरवाजे पर उनका स्वागत किया. जल्दी गौरव ने सबको ड्रिंक्स बना दिए. इस परिस्थिति में सब के लिए ड्रिंक्स जरूरी था. जैसे ही थोडा सरूर चढ़ा, वो चार लोग एक दुसरे के साथ और भी खुलते गए. गौरव के चुटकुले और विवेक के जवाबी चुटकुले नॉन-वेज होते चले जा रहे थे. लड़कियां उन गंदे चुटकुलों पर जम के ताली बजा बजा कर हंस रही थीं. विवेक और गौरव एक दुसरे की बीवियों के साथ खड़े थे. थोड़े समय में ही दोनों जोड़ियाँ एक दुसरे से थोडा दूर होती गयीं. एक दुसरे के कानों में फुसफुसाना शुरू हो गया. एक दुसरे को छूने का छोटा से छोटा मौका भी कोई छोड़ नहीं रहा था. सारा मामला बिलकुल ठीक दिशा में जा रहा था. कुल मिला कर गौरव के बनाए हुए ड्रिंक्स जैसे बिलकुल ठीक काम कर रहे थे. विवेक ने कविता को चेक किया. कविता के मम्मे आनंद में कड़े हो गए थे, उसके गाल शायद थोडा नर्वस होने की वज़ह से लाल हो गए थे.
कविता भी विवेक को बीच बीच में देख लेती थी. वैसे उसे विवेक और रेनू के बारे में कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वो दोनों तो आज सुबह ही अपनी चुदाई की शुरुआत कर चुके थे. बात ये थी की उसके और गौरव के बीच की बात कुछ आगे बढेगी या नहीं?
गौरव शायद कविता की इस अदृश्य उलझन को भांप गया. वो बोला,
"कविता तुमने अपने घर में मुझे अपना स्टोव दिखाया था. आओ मैं तुम्हें अपना होम थिएटर रूम दिखाता हूँ.”
कविता तो मानों पहले से ही तैयार बैठी थी. गौरव ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और बढ़ गया. अब ध्यान देने की बात ये है कि होम थिएटर रूम देखने का निमंत्रण विवेक और रेनू को क्यों नहीं मिला. शायद गौरव और कविता जल्दी से जल्दी रेनू और विवेक से बराबरी करना चाहते थे. क्योंकि सुबह कि चुदाई के बाद विवेक और रेनू का स्कोर इनके मुकाबले में 1-0 था. जैसे ही वे दोनों वहां से निकले, रेनू ने दीवाल पर अलग हुआ स्विच आन कर दिया. वो विवेक की तरफ मुडी और मुस्कराते हुए बोली,
"अब हम गौरव और तुम्हारी प्यारी और मासूम बीवी के बीच जो कुछ भी होगा वो सारा हाल इस स्पीकर पर सुन सकेंगे."
उन्हें स्पीकर पर दरवाजा खुलने की आवाज आई और फिर गौरव और कविता के परों की आहट सुनाई पडी. साड़ी चीजें बिलकुल साफ़ सुनाई पड़ रही थीं. उन्होंने क्लिक की आवाज सुनी, लगता है गौरव ने दरवाजा लॉक कर लिया हो. कविता मुंह दबा कर हंस रही थी. उसकी दिल की धडकनें जोर से चल रही थीं. गौरव ने लाइट ऑफ कर के वहां अँधेरा कर दिया. कविता ने जोर से सांस भरी और उई की अव्वाज निकाली क्योंकि गौरव अपना हाथ उसकी स्कर्ट के अन्दर डाल कर उसकी चूत सहला रहा था. कविता ने अपने पैरों को फैला दिया ताकि गौरव उसकी चूत को मजे से सहला सके और बोली,
"मौका मिला की की दरवाजा बंद और बत्ती बंद और काम चालू गौरव जी?"
"अरे मै तो तुम्हारे लिये कब से कितना बेकरार हूँ, बस मौका मिलने की ही देर थी जानेमन."
"ओह नो .... ओह... नो ..... बड़ा मजा आ रहा है, तुम जिस तरह से मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी रगड़ रहे हो.... ओह गौरव ... तुम तो बड़े खिलाडी निकले..आह्ह..."
"आओ यहाँ इस काउंटर पर बैठो, ताकि मैं तुम्हारी बुर चाट सकूं कविता."
बाहर विवेक और रेनू स्पीकर पर चलने की आवाज फिर गीली चीज चाटने की आवाज और साथ में कविता के सिहरने की आवाज सुन रहे थे.
"ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ... यस गौरव... बहुत अच्छे ... कितना मजा आ रहा है..... ओह शिट गौरव लगता है की झड जाऊंगी... फक......."
भरी साँसों के आवाजों से सारा कमरा भर उठा. थोडी समय बाद कविता एक धीमी से चीख मार कर शांत हो गयी. कविता बोली,
"अब कुछ खाने का मेरा टर्न गौरव.... चलो खोलो और दिखाओ यहाँ क्या छुपा रखा है ..."
और इसके बाद स्पीकर पर गौरव के लंड के ऊपर कविता का गीले मुंह की आवाजें सुनाई दीं. गौरव को मजा लेने की आवाजें भी बीच में आ रही थीं.
और कुछ ही छड़ों बाद
"मैं तुम्हारी बुर चोदना चाहता हूँ कविता... अभी के अभी..."
"यस .... जल्दी से.... ओह यस ...मजा आ रहा है ..... सो गुड. ओह तुम्हारा बड़ा लंड बड़ा प्यारा है गौरव... पेल दो इसे .... छोड़ दो मुझे...मुझे चोदो....... फक...फक...”
थोड़ी देर में जब आवाजें आनी बंद हो गयीं, गौरव बोला,
"ओह कविता, कपडे वापस पहनने की जरूरत नहीं है. चलो वापस विवेक और रेनू के पास चलते हैं... मुझे पूरा यकीन है की वो दोनों ऐसा की कुछ कर रहे होंगे"
"मुझे भी ऐसा जी लगता है"
जब गौरव और कविता नंगे बदन वापस विवेक और रेनू के वापस आये, रेनू फर्श पर फैले कालीन पर पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी. उसने अपने पैर पूरी तरह से फैला रखे थे. विवेक उसकी दोनों लम्बी और सुन्दर टांगों के बीच में बैठा उसकी चूत को अपने मोटे लंड से धीरे धीरे धक्के लगाता हुआ छोड़ रहा था. दोनों काफी आवाजें निकाल रहे थे. कविता ने विवेक को दूसरी औरत को चोदते हुए कभी नहीं देखा था. ये नज़ारा देख कर उसके बदन में जैसे ऊपर से नीचे तक चीटियाँ रेंग गयीं और उसकी चूत फिर से चुदाई के लिए बिलकुल तैयार हो गयी.
गौरव को तो बस इशारा ही काफी था. उसने खड़े खड़े ही पीछे से अपना लंड कविता की बुर में डाल दिया और उसे तब तक चोदा जब तक दोनों झड नहीं गए.
सबने बाद में बैठ कर बड़े ही आराम से डिनर खाया. खाने की टेबल पर बैठ कर उन्होंने खूब सारी बातें की. ध्यान देने वाली बात ये थी की सारी की सारी बातें सेक्स से ही सम्बंधित थीं और चारों लोग डिनर टेबल पर पूरी तरह से नंगे बैठ कर खाना खा रहे थे. खाना ख़तम कर के जब वे वापस उस कमरे में लौटे तो रेनू कविता के साथ चल रही थी. रेनू ने कविता की नंगी कमर को अपने हाथो में भर कर पूछा,
"तुमने कभी किसी औरत के साथ सेक्स किया है कविता?"
"अभी तक तो नहीं ... पर ऐसा लगता है की आज इस चीज पर भी हाथ साफ कर ही डालूँ..पर मुझे पता नहीं है की कैसे करते हैं..."
"अरे कभी न कभी तो जब आदमी के साथ किया होगा तो पहली बार ही हुआ होगा न? करना चालू करो तो बाकी सब अपने आप हो जाएगा..देखो, पहले मैं तुमारी बुर चाटना शुरू करती हूँ...उसके बाद तुम जैसा मैं तुम्हारे साथ करू वो तुम्हें अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ करते जाना.. बस मजा आना चाहिए..”
विवेक और गौरव दोनों लोग अपने हाथ में स्कॉच का जाम ले कर बैठ गए. ऐसा लग रहा था की जैसे लड़के लोग नाईट क्लब में बैठ कर दारू पीते हुए कोई शो देख रहे हों. रेनू ने कविता को सोफे के इनारे पर बिठा कर लिटा दिया और अपने तजुर्बेकार मुंह से कविता की बुर को चाटने लगी. रेनू की जीभ कविता की बुर के बाहर की खल के ऊपर थिरकती और दुसरे ही पल वह उसके बुर के दाने को चाट लेती, अगले पल वह कविता की बुर के छेद में अपनी जीभ घुसेड कर जैसे उसे थोडा सा अपनी जीभ से छोड़ सा देती थी. कविता उन्माद में सिस्कारिया भर रही थी. रेनू धीरे धीरे बुर के दोनों तरफ की खाल चाट रही थी और उसने अपने एक उंगली कविता की बुर में डाल राखी थी और दूसरी उंगली उसके गांड में. कविता के लिए यह अनुभव एकदम नया था और वो इसे जी भर के मजे ले कर ले रही थी. कविता अपना बदन एक नागिन की तरह उन्माद में घुमा रही थी. वो उन्माद में चीख रही थी. इतना आनंद उसके बाद के बाहर हो गया और एक चीत्कार के साथ ही उसने रेनू की जीभ पर अपनी बुर का रस उड़ेल दिया. कविता का बदन शिथिल पद गया. वह रेनू के कन्धों पर अपने पर डाले हुए सोफे पर टाँगे फैला कर नंगे पडी हुई थी.
कविता ने लेटे लेटे अपनी बुर की तरफ देखा. रेनू ने अपना चेहरा उसकी दोनों टांगों के बीच से ऊपर उठा. दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्काये. कविता उठी और रेनू को पकड़ कर उसके होठों से होठों का चुम्बन दिया. कविता ने रेनू के होठों पर लगा हुआ अपनी ही बुर का रस चाट चाट कर स्सफ कर दिया.
"ये तो वाकई बड़ा मजे वाला था रेनू... थैंक यू डार्लिंग. मुझे लगता है की मुझे भी बदले में कुछ करना चाहिए”
कविता रेनू को लिटा कर उसके ऊपर 69 का पोज बना कर लेट गयी. दोनों लड़कियां एक दुसरे की चूत मस्त हो कर चाट रहीं थीं.
गौरव के पास क्यूबा से लाये हुए सिगार थे. उसने एक गौरव को दिया और एक खुद के लिए रखा. दोनों लड़कियों के पास गए. गौरव ने रेनू की चूत में लगभग 2 इंच सिगार घुसेढ़ दिया. विवेक ने भी इसकी पूरी नक़ल करते हुए कविता की बुर में सिगार दाल दिया.
रेनू बोली, “क्या तुम लोगों के लंड अब इतना थक गए हैं की हम लोगों को अब सिगार से चुदना पड़ेगा”
“अरे नहीं मेरी जान, ये तो हम तुम्हें चोदने के पहले तुम्हारी चूतों को थोडा धूम्रपान करा रहे हैं” कहते हुए गौरव ने सिगार दुसरे सिरे से जलाने की कोशिश की. पर वो जला नहीं क्योंकि सिगार को फूंकने की जरूरत होती है. और रेनू की चूत में शायद फूंकने का हुनर नहीं था.
कविता ने जोर से डांट लगाई, “अरे ये आग हटाओ यार, हम लोग जल गए तो.. पागल हो क्या तुम लोग”
दोनों ने तुरंत अपनी बीवियों की आज्ञा का पालन करते हुए सिगार चूत से निकाल कर जला लिया. सिगार चूत के रस से लबालब था तो दोनों को सिगार पीने में ख़ास ही मज़ा आ रहा था. कमरे में चूत के रस के साथ शराब और सिगार के धुंएँ की गंध भर गयी.
कविता और रेनू एक दुसरे की चूत चूसते हुए लगता है झड़ने ही वाले थे. विवेक बाथरूम के लिए गया. जब वो वापस लौटा, उसने देखा की गौरव चेयर पर बैठा है और कविता उसकी बाहों में बाहें डाले उसके ऊपर बैठी हुई है. गौरव का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है. कविता धीरे धीरे ऊपर नीचे हो रही मानों घोड़े की सवारी कर रही हो. विवेक मुस्काराया और कविता के पीछे जा कर खड़ा हो गया. कविता के चूतर गौरव के मोटे लंड के ऊपर उछालते देख कर उसका लंड फटाक से खड़ा हो गया. रेनू को समझ आ गया की विवेक की मन्सा क्या है. उसने ड्रावर खोली और उसी KY जेली की ट्यूब निकाली और आँख मारते हुए विवेक को थमा दी. विवेक ने ट्यूब से क्रीम अपने लौंडे पर लगाई और ढेर सारी क्रीम उंगली में लगा कर कविता की गांड के छेद पर लगाने लगा. जैसे ही ठंडी क्रीम कविता की गांड में लगी, कविता चौंक कर उचक गयी. पीछे मुड़ कर देखा तो समझ गयी की विवेक के गंदे दिमाग में की योजना है. वो गौरव के लौंडे को चोदते हुए हाँफते हुए बोली,
"हाँ विवेक.... जल्दी करो... मैंने इस पोज के के बारे में कितना सोचा हुआ है... आज वो सपना हकीकत में बदलने जा रहा है....कम ऑन विवेक...गो फॉर इट..."
रेनू आगे आई और विवेक का क्रीम से सना हुआ लौंडा कविता की गांड के छेद के मुहाने पर टिकाया, ऊपर विवेक को देख कर आँख मारी, जैसे कि वो 100 मीटर रेस में रेस स्टार्ट के लिए फायर कर रही हो. विवेक ने एक धक्का दिया और उसका लौंडा कविता की गांड में जा घुसा. वैसे तो कविता ने विवेक का लौंडा अपनी गांड में कई बार लिया हुआ था. पर ये पहली बार था जब लंड गांड में तब घुसा, जब बुर में एक मोटा सा लंड पहले से घुस कर कमाल कर रहा था. ये अनुभव बड़ा ही अनोखा था और बड़ा की मजेदार भी. जैसे जैसे दो मोटे लंड उसके दोनों छेदों में अन्दर बाहर जाते थे, वह वासना के उन्माद में पागल सी हो जा रही थी. आनंद के चरम शीर्ष पर थी वो और कुछ भी बडबडा रही थी.
“चोदो मुझे तुम दोनों....ओह मई गॉड...मेरी गांड मारो विवेक....मेरी बुर को चोद डालो गौरव....ओह्ह...मैं झड़ने वाली हूँ...मेरी मारो जोर से ....आ...आ...आ..आह...उईईईईई.......”, कविता ये बडबडाते हुए जोरों से झड गयी.
उस रात बहुत कुछ हुआ. रेनू और कविता ने विवेक और गौरव से डबल-चुदाई कराई. कविता ने रेनू से अपनी बुर फिर से चुस्वाई और फिर कविता ने रेनू की चूत चूसी. गर्मी की ये लम्बी शाम चारों ने बहुत से खेल खेलते हुए गुजारी.
जब वे चलने लगे तो रेनू ने कहा,
“मुझे बड़ी खुशी है की हम लोगों का परिचय इतनी जल्दी तुम लोगों से हो गया. बड़ा अच्छा हो की और 4-5 कपल्स हमारे खेल में शामिल हो सकते. तुम लोगों किसी और कपल्स को जानते हो जो इसमें शामिल हो सकें? मैं अगले हफ्ते नया जॉब पर स्टार्ट कर रही हूँ. वहां पर मैं और लोगों को अन्दर लाने की कोशिश करूंगी. जल्द ही हमारे पास एक बड़ा और बढ़िया सा ग्रुप होगा. बहुत मजा आएगा न? हम यहाँ पर पार्टी करेंगे. हम हिल स्टेशन पर जा कर पार्टी करेंगे”
सब लोगों ने फिर से किस किया एक दुसरे के बदन को अच्छे से छुआ. उन्होंने अगले हफ्ते की पार्टी विवेक और कविता के घर पर तय की. चारों लोग अपनी इस नयी शुरुआत से बड़े खुश थे. वो जानते थे कि आने वाला समय उस सबके जीवन में नए नए आनंद ले कर आने वाला था और सब लोग इस बात से बड़े खुश थे.
आज की शाम को पड़ोसियों के घर जम कर सेक्सी पार्टी करने के बाद, कविता और विवेक धीरे धीरे घर की तरफ टहलते हुए जा रहे थे. थोड़े देर के लिये दोनों खामोश थे. शायद सोच भी नहीं प् रहे थे की पिछले ३-४ घंटे में जो भी हुआ है he सच में हुआ है या सम्पना था. शायद दोनों ही इस बात का इंतज़ार कर रहे थे की दूसरा बोले. यह उनका स्वैप का पहला अनुभव था. उन्हें खुशी थी की उनका पहला अनुभव इतना अच्छा गया.
विवेक मौन भंग करते हुए बोला, "कविता."
"यस डार्लिंग!"
"आज रात की इस पार्टी में तुम्हें मजा आया की नहीं?"
"बहुत ज्यादा मज़ा आया विवेक, तुम्हें तो मालूम है कि मुझे तुम्हारे सामने किसी दुसरे मर्द से चुदने का कितने सालों से इंतज़ार था. मेरा गौरव से चुदना, फिर तुमसे चुदना फिर तुम दोनों से एक साथ चुदना...और रेनू की का मेरी चूत को चाटना और मेरा उसकी चूत को चाटना...मुझे तो अभी भी मेरी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा है.“
(पाठक ये सब कैसे हुआ पिछले भाग में पढ़ सकते हैं)
कविता बोलती जा रही थी,
“हम लोगों ने अगले हफ्ते मिलने का प्लान तो किया है. पर मेरा मन तो उससे पहले एक बार और मिलने का हो रहा है विवेक....मतलब कल राट ही मिलें उसने फिर से?”
विवेक ने स्वीकृति दी,
"बढ़िया आईडिया है ये. मुझे लगता है कि वो मान जायेंगे. हमारे पडोसी हमसे कहीं से कम चुदक्कड़ नहीं हैं. वो चोदने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे. मैं उन्हें कॉल कर के कल सुबह ही बुला लूँगा डार्लिंग!”
दोनों एक बार फिर से शांत हो गए
"विवेक"
"हाँ जी"
"तुन्हें मुझे गौरव मुझे चोदते हुए देख कर कैसा लगा था?"
"मुझे बड़ा ही हॉट लगा बेबी डॉल. दुसरे आदमी का लौंडा तिम्हारी चूत में जाते देख कर मेरा लंड तो बहुत जोर से खड़ा हो गया. अब मैं तुम्हें दो आदमियों से इकठ्ठे चुदते हुए देखना चाहता हूँ. जैसे गौरव और मैंने तुम्हारी और रेनू की डबल-चुदाई की, ठीक वैसे ही. कुछ और लोगों का इंतज़ाम करना पड़ेगा अगली पार्टी के लिए”
"ओह, मुझे भी वो करना है. तुम्हें पता है जब गौरव मुझे चोद रहा था और तुम वहां बैठ कर अपना लंड हाथ से धीरे धीरे हिलाते हुए मुझे चुदते हुए देख रहे थे, मैं जितना जोर से झड़ी की पूरे जीवन में उतना जोर से नहीं नहीं झड़ी थी. तुम्हारा मुझे देखना एक कमाल का अनुभव था विवेक.”
“हाँ.. आज की रात बड़े मजे की राट थी बेबी डॉल.”
“और, जब मैं और रेनू एक दुसरे के ऊपर लेट कर एक दुसरे की चूत चाट रहे थे, तुम्हें मजा आया होगा न?”
"बहुत मजा आया कविता. जीवन मजे लेने के लिए है. मुझे बड़ी खुशी है की तुमने आज किसी औरत को चोदने का नया अनुभव प्राप्त किया"
"और मुझे बड़ा मजा आया जब तुम और रेनू चोद रहे थे, और बाद में जब तुमने और गौरव दोनों ने
रेनू की डबल-चुदाई की, तब तो कमाल ही हो गया."
"बिलकुल सही बोला"
"विवेक मुझे चुदाई बड़ी अच्छी लगती है, कभी कभी ऐसा लगता है जैसे मेरा मन करता है कि किसी को भी चोद डालूँ”
"हाँ कविता, इस मामले में मैं भी कुछ ऐसा ही हूँ. जब सेक्स इतना आनंद देने वाला काम है तो पता नहीं दुनिया ने इसमें इतनी रोक टोक क्यों लगा रखी है. केवल अपनी बीवी को चोदो...किसी और की तरफ बुरी नज़र से मत देखो...मुझे ये सारे नियम बेकार के लगते हैं. मुझे लगता है पड़ोसियों के साथ सेक्स कर के हमारे लिए एक नयी दुनिया दी खुल चुकी है. और अब ये हमारे ऊपर है की हम इस नयी दुनिया का कितना आनंद लें.”
"काश की ये सब ऐसे ही चलता रहे. मैं तो बस अब किसी भी चीज के लिए हमेशा तैयार हूँ. जो भी सामने आएगा.. मैं एक बार कोशिश जरूर करूंगी करने के लिए....तुम्हें कैसा लगेगा की मैं माल जाऊं और किसी बिलकुल अजनबी से आदमी से चुद लूं? ... जब भी मैं इस बारे में सोचती हूँ, मेरा मन बेचैन हो जाता है."
"ओह, सही जा रही हो बेबी डॉल.... मैं देखना या फिर कम से कम इस बारे में सुनना तो जरूर चाहूंगा. मेरी तरफ से तुम्हें खुली छूट है कविता."
जैसे ही उन्होंने घर का दरवाजा खोला, सायरा सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी. उसके चेहरे पर ऐसा की लुक था जैसे बिल्ली के दूध पीने के बाद का होता है.
विवेक मुस्कराया और कविता के कानों में फुसफुसाया, "मैं सायरा को उसके घर तक छोड के आता हूँ. अगर देर लगे तो तुम सो जाना प्लीज"
"विवेक, क्या तुम कुछ नया शुरू करने वाले हो?" वो वापस फुसफुसाई.
"आज के दिन तो कुछ भी हो सकता है."
"हाँ, आज के दिन तो सही में कुछ भी हो सकता है. खैर, बाद में मुझे पूरी कहानी सुनानी पड़ेगी"
"ओह.. जरूर"
जैसे जी सायरा नीचे उस तक पहुची, विवेक ने उसके लिए दरवाजा खोला और बोला,
"क्या मैं इस खूबसूरत और जवान लडकी सायरा को उसके घर तक छोड़ दूँ?”
"ह्म्म्म जरूर मिस्टर वी."
जैसे ही दरवाजा बंद हुआ. विवेक ने अपना हाथ सायरा की पतली कमर में डाल दिया और सायरा को अपनी बाहों में खींच लिया. उसका जवान जिस्म एक पल में विवेक के अनुभवी बदन से टकराया, उनके होठ आपस में मिले और दोनों के बीच का पहला और गहरा चुम्बन लिया गया. जैसे ही चुम्बन ख़त्म हुआ, विवेक को ये बात अच्छी तरह से समझा आ गयी की सायरा अभी अभी चूत चाट कर आयी है. चूँकि सायरा पिछले ३-४ घंटे से उसकी बेटी तृषा के साथ थी, विवेक को ये समझने में देर नहीं लगी की उसके होठों पर किसकी चूत का रस लगा हुआ है.
"सायरा तुम हो बड़ी हॉट. मैं तो जैसे जलने लगा हूँ. तुमने बताया था की मुंबई में तुम्हारी सहेलियों के पापा तुम्हारा अच्छे दोस्त हुआ करते थे. क्या इसका ये मतलब है की वहां के अंकल लोग और तुम आपस में ....”
“सेक्स करते थे मिस्टर वी”, सायरा ने बेबाकी से विवेक का वाक्य पूरा किया.
"तो मैं भी तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ सायरा"
"मुझे मालूम है मिस्टर वी...वो लोग मुझे थोडा पॉकेट मनी भी देते थे"
“मैं भी दूंगा”
“और कभी कभी सिगरेट भी पिलाते थे”
“ओह सिगरेट? ये लो” विवेक ने पैकेट निकाल कर दिया.
सायरा ने एक सिगरेट निकाल कर होठों पर लगाया और जलाया. पहला काश जोर से खींचा और फिर से विवेक के होठों पर होठ रख कर चुम्मा लेते हुए सारा का सारा धुँआ विवेक के मुंह के अन्दर फूंक दिया. विवेक को सायरा की ये अदा ऐसी भाई की उसका लंड एक टाइट हो गया.
विवेक ने भी एक सिगरेट जला ली.
“मेरे मम्मी पापा कैसे लगे मिस्टर वी?”
“ओह.. बहुत खूब लगे. हमें बड़ी खुशी है की तुम्हारे जैसे फॅमिली यहाँ रहने आयी है.”
“पापा ने कविता आंटी को मजा दिया की नहीं?”
“अरे भरपूर दिया सायरा. क्या तुम अपने पापा मम्मी के साथ भी?”
सायरा ने धुएं का कश छोड़ते हुए बोला, “मेरे परिवार में सब लोग बड़े ओपन माइंडेड हैं. इस लिए जब जिसका जो मन करता है, दुसरे को उससे कोई तकलीफ नहीं होती है.”
“ओह.. अच्छा ...” विवेक तो जैसे हकला रहा था.
“और मैंने तृषा को ये सब बता दिया है..ताकि आपको आगे बढ़ने में थोडा आराम रहे मिस्टर वी”
“थैंक यू सायरा” विवेक की जैसे बांछे ही खिल गयीं.
दोनों की सिगरेट अब ख़तम हो गए थी.
“तो चलें अब?”
“जरूर”
विवेक और सायरा लगभग दौड़ते हुए सायरा के घर में घुसे. घुसते ही विवेक ने अपने हाथ तृषा के स्कर्ट में दाल के उसके नंगी बुर सहलानी शुरू कर दी. सायरा अपनी मिनी स्कर्ट के नीचे कुछ नहीं पहना था. विवेक के शॉर्ट्स अपन आप जमीन पर गिर गए. विवेक ने उसका टॉप उतार कर के उसकी जवान चुन्चियों को आज़ाद कर दिया. अब तक दोनों एकदम नंगे हो चुके थे. विवेक ने देखा की सायरा को जितना उसने सोचा था वो उससे भी कहीं ज्यादा सेक्सी और हॉट थी.
सायरा बोली,
"ओह यस मिस्टर वी, प्लीज मुझे चोदो...जल्दी."
विवेक ने सायरा को आगे की तरफ झुकाया और अपने लंड को उसकी गांड के तरफ से चूत के मुहाने पर टिकाया. सायरा की चूत पहले से ही गीली थी. विवेक ने सोचा की हो सकता है की तृषा ने भी सायरा की चूत चाटी हो और इसकी वज़ह से ये गीली हुई हो.
सायरा ने अपनी गांड पीछे की तरफ ठेली जिससे विवेक का लंड आधा घुस गया.
“ओह मिस्टर वी..प्लीज डालो पूरा..”
विवेक ने अगले ही धक्के में पूरा पेल दिया. वो जानता था कि जवानी में चुदाई का बड़ा उन्माद होता है. सो उसने जल्दी जल्दी धक्के लगाने शुरु कर दिए. सायरा का ये पहला टाइम तो था नहीं मोटे और लम्बे लंड लेने का, सो वो बड़े ही मजे ले कर चुदाई करवाने लगी. थोड़ी ही देर में सायरा झड गयी. तो उसने विवेक का लंड अपनी चूत ने निकाल लिया. वो घुटने के बल बैठ गयी, विवेक का लंड अपने हाथों में लिया और बोली,
“मुझे चूत के रस से सना हुआ लंड बड़ा स्वादिष्ट लगता है”
वह विवेक का लंड अपने मुंह में लेकर उसे मुंह से चोदने लगी. जवान मुंह की गर्मी और गीलपन से विवेक थोड़ी ही देर में झड गया. सायरा विवेक का पूरा वीर्य अपने मुंह में ले कर पी गयी.
कविता और विवेक नंगे बदन एक दुसरे की बाँहों में समाये साड़ी रात सोते रहे. दोनों ने पिछली रात एक दुसरे को चोद चोद कर इतना थकाया था की जब वो एक बार सोये तो सुबह कब हुई ये पता नहीं चला. विवेक की आँख 9:30 पर खुली और वो तुरंत ब्रश करने चला गया. वापस आकर कविता के होठों पर होंठ रखे और धीरे से बोला, "बाय". विवेक अपने सामने के घर में कल ही शिफ्ट हुए पड़ोसी की बीवी रेनू से मिलने जा रहा था.
कविता को विवेक के वापस आने के लिए लगभग दो घंटे इंतज़ार करना पड़ा. विवेक को देखते ही कविता समझ गयी को वो रेनू को जम कर छोड़ कर आया है. विवेक ने उसे साड़ी आपबीती सुनाई. उसने बताय की जब वो उसके घर पहुंचा रेनू बिस्तर पर नंगी लेट कर उसका इंतज़ार कर रही थी. दोनों ने एक दुसरे पहले तो चूस चूस कर पानी निकाला फिर चोद चोद कर.
"कविता उन्होंने हमें शाम को ड्रिंक्स के लिए बुलाया है. तुम अभी भी राजी हो ना?"
कविता हंसी और बोली,
"अरे ये भी कोई पूछने की बात है... ऐसा मौका छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता."
"अच्छा एक बात - रेनू पूछ रही थी की क्या तुम्हें औरत के साथ सेक्स पसंद है"
कविता बोली ... "मुझे लगता है की ये कला भी सीखने का वक़्त आ ही गया है...."
दोनों ने बाकी का दिन शाम का इंतज़ार करते हुए ही गुज़ारा. शाम को जब वो पड़ोसियों के लिए निकलने ही वाले थे, उसके घर की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो देखा पड़ोसियों की बेटी सायरा खडी थी.
"मैंने सोचा की मैं तृषा को यहाँ कंपनी दूंगी, ताकि आप दोनों को मेरी मम्मी और पापा को ठीक से जानने का पूरा मौका मिले."
सायरा अन्दर आई. वो मिनी स्कर्ट और लो कट ब्लाउज पहने हुए थी. कविता अभी भी ऊपर तैयार हो रही थी. विवेक ने सायरा की चून्चियों को घूरा और बोला,
"ये बड़ी अच्छी बात है सायरा.. ये तो बड़ा अच्छा होगा अगर तुम और तृषा अच्छी सहेलियां बन जाओ.."
सायरा मुस्करा रही थी उसे अच्छे तरह पता था की विवेक इस समय उसके चुन्चियों को मजे ले कर घूर रहा है. वो बोली,
"मुझे पूरा यकीन है की हम दोनों बेस्ट सहेलियां बनेंगे ... क्या आप मेरे दोस्त बनेंगे
विवेक अंकल? मुंबई में मेरी कई सहेलियों के पिता लोग मेरे बड़े अच्छे दोस्त थे”
विवेक मन ही मन सोच रहा था की सायरा क्या उसे हिंट दे रही थी कि मुंबई में वो अपनी सहेलियों के पिताओं के साथ मौज कर रही थी. इस ख़याल से ही उसका लंड खड़ा हो गया. उसने सायरा की आँखों में आँखें डाल कर बोला,
"मुझसे दोस्ती करोगी सायरा?"
"ओह.. बिलकुल"
उसी समय कविता सीढ़ियों से उतारते हुए नीचे आई. उसकी ड्रेस बहुत ही सेक्सी थी, विवेक और सायरा जैसे कविता को घूरते जा रहे थे. तृषा कविता के पीछे पीछे आई और कविता की ड्रेस का बिलकुल ध्यान न देते हुए उसने सायरा का हाथ पकड़ा और अपने ऊपर कमरे में चली गयी.
कविता और विवेक हाथों में हाथ डाले जब पड़ोसियों के यहाँ पहुचे, गौरव और रेनू दोनों ने बड़े ही खुशी से उसका दरवाजे पर उनका स्वागत किया. जल्दी गौरव ने सबको ड्रिंक्स बना दिए. इस परिस्थिति में सब के लिए ड्रिंक्स जरूरी था. जैसे ही थोडा सरूर चढ़ा, वो चार लोग एक दुसरे के साथ और भी खुलते गए. गौरव के चुटकुले और विवेक के जवाबी चुटकुले नॉन-वेज होते चले जा रहे थे. लड़कियां उन गंदे चुटकुलों पर जम के ताली बजा बजा कर हंस रही थीं. विवेक और गौरव एक दुसरे की बीवियों के साथ खड़े थे. थोड़े समय में ही दोनों जोड़ियाँ एक दुसरे से थोडा दूर होती गयीं. एक दुसरे के कानों में फुसफुसाना शुरू हो गया. एक दुसरे को छूने का छोटा से छोटा मौका भी कोई छोड़ नहीं रहा था. सारा मामला बिलकुल ठीक दिशा में जा रहा था. कुल मिला कर गौरव के बनाए हुए ड्रिंक्स जैसे बिलकुल ठीक काम कर रहे थे. विवेक ने कविता को चेक किया. कविता के मम्मे आनंद में कड़े हो गए थे, उसके गाल शायद थोडा नर्वस होने की वज़ह से लाल हो गए थे.
कविता भी विवेक को बीच बीच में देख लेती थी. वैसे उसे विवेक और रेनू के बारे में कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वो दोनों तो आज सुबह ही अपनी चुदाई की शुरुआत कर चुके थे. बात ये थी की उसके और गौरव के बीच की बात कुछ आगे बढेगी या नहीं?
गौरव शायद कविता की इस अदृश्य उलझन को भांप गया. वो बोला,
"कविता तुमने अपने घर में मुझे अपना स्टोव दिखाया था. आओ मैं तुम्हें अपना होम थिएटर रूम दिखाता हूँ.”
कविता तो मानों पहले से ही तैयार बैठी थी. गौरव ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और बढ़ गया. अब ध्यान देने की बात ये है कि होम थिएटर रूम देखने का निमंत्रण विवेक और रेनू को क्यों नहीं मिला. शायद गौरव और कविता जल्दी से जल्दी रेनू और विवेक से बराबरी करना चाहते थे. क्योंकि सुबह कि चुदाई के बाद विवेक और रेनू का स्कोर इनके मुकाबले में 1-0 था. जैसे ही वे दोनों वहां से निकले, रेनू ने दीवाल पर अलग हुआ स्विच आन कर दिया. वो विवेक की तरफ मुडी और मुस्कराते हुए बोली,
"अब हम गौरव और तुम्हारी प्यारी और मासूम बीवी के बीच जो कुछ भी होगा वो सारा हाल इस स्पीकर पर सुन सकेंगे."
उन्हें स्पीकर पर दरवाजा खुलने की आवाज आई और फिर गौरव और कविता के परों की आहट सुनाई पडी. साड़ी चीजें बिलकुल साफ़ सुनाई पड़ रही थीं. उन्होंने क्लिक की आवाज सुनी, लगता है गौरव ने दरवाजा लॉक कर लिया हो. कविता मुंह दबा कर हंस रही थी. उसकी दिल की धडकनें जोर से चल रही थीं. गौरव ने लाइट ऑफ कर के वहां अँधेरा कर दिया. कविता ने जोर से सांस भरी और उई की अव्वाज निकाली क्योंकि गौरव अपना हाथ उसकी स्कर्ट के अन्दर डाल कर उसकी चूत सहला रहा था. कविता ने अपने पैरों को फैला दिया ताकि गौरव उसकी चूत को मजे से सहला सके और बोली,
"मौका मिला की की दरवाजा बंद और बत्ती बंद और काम चालू गौरव जी?"
"अरे मै तो तुम्हारे लिये कब से कितना बेकरार हूँ, बस मौका मिलने की ही देर थी जानेमन."
"ओह नो .... ओह... नो ..... बड़ा मजा आ रहा है, तुम जिस तरह से मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी रगड़ रहे हो.... ओह गौरव ... तुम तो बड़े खिलाडी निकले..आह्ह..."
"आओ यहाँ इस काउंटर पर बैठो, ताकि मैं तुम्हारी बुर चाट सकूं कविता."
बाहर विवेक और रेनू स्पीकर पर चलने की आवाज फिर गीली चीज चाटने की आवाज और साथ में कविता के सिहरने की आवाज सुन रहे थे.
"ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ... यस गौरव... बहुत अच्छे ... कितना मजा आ रहा है..... ओह शिट गौरव लगता है की झड जाऊंगी... फक......."
भरी साँसों के आवाजों से सारा कमरा भर उठा. थोडी समय बाद कविता एक धीमी से चीख मार कर शांत हो गयी. कविता बोली,
"अब कुछ खाने का मेरा टर्न गौरव.... चलो खोलो और दिखाओ यहाँ क्या छुपा रखा है ..."
और इसके बाद स्पीकर पर गौरव के लंड के ऊपर कविता का गीले मुंह की आवाजें सुनाई दीं. गौरव को मजा लेने की आवाजें भी बीच में आ रही थीं.
और कुछ ही छड़ों बाद
"मैं तुम्हारी बुर चोदना चाहता हूँ कविता... अभी के अभी..."
"यस .... जल्दी से.... ओह यस ...मजा आ रहा है ..... सो गुड. ओह तुम्हारा बड़ा लंड बड़ा प्यारा है गौरव... पेल दो इसे .... छोड़ दो मुझे...मुझे चोदो....... फक...फक...”
थोड़ी देर में जब आवाजें आनी बंद हो गयीं, गौरव बोला,
"ओह कविता, कपडे वापस पहनने की जरूरत नहीं है. चलो वापस विवेक और रेनू के पास चलते हैं... मुझे पूरा यकीन है की वो दोनों ऐसा की कुछ कर रहे होंगे"
"मुझे भी ऐसा जी लगता है"
जब गौरव और कविता नंगे बदन वापस विवेक और रेनू के वापस आये, रेनू फर्श पर फैले कालीन पर पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी. उसने अपने पैर पूरी तरह से फैला रखे थे. विवेक उसकी दोनों लम्बी और सुन्दर टांगों के बीच में बैठा उसकी चूत को अपने मोटे लंड से धीरे धीरे धक्के लगाता हुआ छोड़ रहा था. दोनों काफी आवाजें निकाल रहे थे. कविता ने विवेक को दूसरी औरत को चोदते हुए कभी नहीं देखा था. ये नज़ारा देख कर उसके बदन में जैसे ऊपर से नीचे तक चीटियाँ रेंग गयीं और उसकी चूत फिर से चुदाई के लिए बिलकुल तैयार हो गयी.
गौरव को तो बस इशारा ही काफी था. उसने खड़े खड़े ही पीछे से अपना लंड कविता की बुर में डाल दिया और उसे तब तक चोदा जब तक दोनों झड नहीं गए.
सबने बाद में बैठ कर बड़े ही आराम से डिनर खाया. खाने की टेबल पर बैठ कर उन्होंने खूब सारी बातें की. ध्यान देने वाली बात ये थी की सारी की सारी बातें सेक्स से ही सम्बंधित थीं और चारों लोग डिनर टेबल पर पूरी तरह से नंगे बैठ कर खाना खा रहे थे. खाना ख़तम कर के जब वे वापस उस कमरे में लौटे तो रेनू कविता के साथ चल रही थी. रेनू ने कविता की नंगी कमर को अपने हाथो में भर कर पूछा,
"तुमने कभी किसी औरत के साथ सेक्स किया है कविता?"
"अभी तक तो नहीं ... पर ऐसा लगता है की आज इस चीज पर भी हाथ साफ कर ही डालूँ..पर मुझे पता नहीं है की कैसे करते हैं..."
"अरे कभी न कभी तो जब आदमी के साथ किया होगा तो पहली बार ही हुआ होगा न? करना चालू करो तो बाकी सब अपने आप हो जाएगा..देखो, पहले मैं तुमारी बुर चाटना शुरू करती हूँ...उसके बाद तुम जैसा मैं तुम्हारे साथ करू वो तुम्हें अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ करते जाना.. बस मजा आना चाहिए..”
विवेक और गौरव दोनों लोग अपने हाथ में स्कॉच का जाम ले कर बैठ गए. ऐसा लग रहा था की जैसे लड़के लोग नाईट क्लब में बैठ कर दारू पीते हुए कोई शो देख रहे हों. रेनू ने कविता को सोफे के इनारे पर बिठा कर लिटा दिया और अपने तजुर्बेकार मुंह से कविता की बुर को चाटने लगी. रेनू की जीभ कविता की बुर के बाहर की खल के ऊपर थिरकती और दुसरे ही पल वह उसके बुर के दाने को चाट लेती, अगले पल वह कविता की बुर के छेद में अपनी जीभ घुसेड कर जैसे उसे थोडा सा अपनी जीभ से छोड़ सा देती थी. कविता उन्माद में सिस्कारिया भर रही थी. रेनू धीरे धीरे बुर के दोनों तरफ की खाल चाट रही थी और उसने अपने एक उंगली कविता की बुर में डाल राखी थी और दूसरी उंगली उसके गांड में. कविता के लिए यह अनुभव एकदम नया था और वो इसे जी भर के मजे ले कर ले रही थी. कविता अपना बदन एक नागिन की तरह उन्माद में घुमा रही थी. वो उन्माद में चीख रही थी. इतना आनंद उसके बाद के बाहर हो गया और एक चीत्कार के साथ ही उसने रेनू की जीभ पर अपनी बुर का रस उड़ेल दिया. कविता का बदन शिथिल पद गया. वह रेनू के कन्धों पर अपने पर डाले हुए सोफे पर टाँगे फैला कर नंगे पडी हुई थी.
कविता ने लेटे लेटे अपनी बुर की तरफ देखा. रेनू ने अपना चेहरा उसकी दोनों टांगों के बीच से ऊपर उठा. दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्काये. कविता उठी और रेनू को पकड़ कर उसके होठों से होठों का चुम्बन दिया. कविता ने रेनू के होठों पर लगा हुआ अपनी ही बुर का रस चाट चाट कर स्सफ कर दिया.
"ये तो वाकई बड़ा मजे वाला था रेनू... थैंक यू डार्लिंग. मुझे लगता है की मुझे भी बदले में कुछ करना चाहिए”
कविता रेनू को लिटा कर उसके ऊपर 69 का पोज बना कर लेट गयी. दोनों लड़कियां एक दुसरे की चूत मस्त हो कर चाट रहीं थीं.
गौरव के पास क्यूबा से लाये हुए सिगार थे. उसने एक गौरव को दिया और एक खुद के लिए रखा. दोनों लड़कियों के पास गए. गौरव ने रेनू की चूत में लगभग 2 इंच सिगार घुसेढ़ दिया. विवेक ने भी इसकी पूरी नक़ल करते हुए कविता की बुर में सिगार दाल दिया.
रेनू बोली, “क्या तुम लोगों के लंड अब इतना थक गए हैं की हम लोगों को अब सिगार से चुदना पड़ेगा”
“अरे नहीं मेरी जान, ये तो हम तुम्हें चोदने के पहले तुम्हारी चूतों को थोडा धूम्रपान करा रहे हैं” कहते हुए गौरव ने सिगार दुसरे सिरे से जलाने की कोशिश की. पर वो जला नहीं क्योंकि सिगार को फूंकने की जरूरत होती है. और रेनू की चूत में शायद फूंकने का हुनर नहीं था.
कविता ने जोर से डांट लगाई, “अरे ये आग हटाओ यार, हम लोग जल गए तो.. पागल हो क्या तुम लोग”
दोनों ने तुरंत अपनी बीवियों की आज्ञा का पालन करते हुए सिगार चूत से निकाल कर जला लिया. सिगार चूत के रस से लबालब था तो दोनों को सिगार पीने में ख़ास ही मज़ा आ रहा था. कमरे में चूत के रस के साथ शराब और सिगार के धुंएँ की गंध भर गयी.
कविता और रेनू एक दुसरे की चूत चूसते हुए लगता है झड़ने ही वाले थे. विवेक बाथरूम के लिए गया. जब वो वापस लौटा, उसने देखा की गौरव चेयर पर बैठा है और कविता उसकी बाहों में बाहें डाले उसके ऊपर बैठी हुई है. गौरव का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है. कविता धीरे धीरे ऊपर नीचे हो रही मानों घोड़े की सवारी कर रही हो. विवेक मुस्काराया और कविता के पीछे जा कर खड़ा हो गया. कविता के चूतर गौरव के मोटे लंड के ऊपर उछालते देख कर उसका लंड फटाक से खड़ा हो गया. रेनू को समझ आ गया की विवेक की मन्सा क्या है. उसने ड्रावर खोली और उसी KY जेली की ट्यूब निकाली और आँख मारते हुए विवेक को थमा दी. विवेक ने ट्यूब से क्रीम अपने लौंडे पर लगाई और ढेर सारी क्रीम उंगली में लगा कर कविता की गांड के छेद पर लगाने लगा. जैसे ही ठंडी क्रीम कविता की गांड में लगी, कविता चौंक कर उचक गयी. पीछे मुड़ कर देखा तो समझ गयी की विवेक के गंदे दिमाग में की योजना है. वो गौरव के लौंडे को चोदते हुए हाँफते हुए बोली,
"हाँ विवेक.... जल्दी करो... मैंने इस पोज के के बारे में कितना सोचा हुआ है... आज वो सपना हकीकत में बदलने जा रहा है....कम ऑन विवेक...गो फॉर इट..."
रेनू आगे आई और विवेक का क्रीम से सना हुआ लौंडा कविता की गांड के छेद के मुहाने पर टिकाया, ऊपर विवेक को देख कर आँख मारी, जैसे कि वो 100 मीटर रेस में रेस स्टार्ट के लिए फायर कर रही हो. विवेक ने एक धक्का दिया और उसका लौंडा कविता की गांड में जा घुसा. वैसे तो कविता ने विवेक का लौंडा अपनी गांड में कई बार लिया हुआ था. पर ये पहली बार था जब लंड गांड में तब घुसा, जब बुर में एक मोटा सा लंड पहले से घुस कर कमाल कर रहा था. ये अनुभव बड़ा ही अनोखा था और बड़ा की मजेदार भी. जैसे जैसे दो मोटे लंड उसके दोनों छेदों में अन्दर बाहर जाते थे, वह वासना के उन्माद में पागल सी हो जा रही थी. आनंद के चरम शीर्ष पर थी वो और कुछ भी बडबडा रही थी.
“चोदो मुझे तुम दोनों....ओह मई गॉड...मेरी गांड मारो विवेक....मेरी बुर को चोद डालो गौरव....ओह्ह...मैं झड़ने वाली हूँ...मेरी मारो जोर से ....आ...आ...आ..आह...उईईईईई.......”, कविता ये बडबडाते हुए जोरों से झड गयी.
उस रात बहुत कुछ हुआ. रेनू और कविता ने विवेक और गौरव से डबल-चुदाई कराई. कविता ने रेनू से अपनी बुर फिर से चुस्वाई और फिर कविता ने रेनू की चूत चूसी. गर्मी की ये लम्बी शाम चारों ने बहुत से खेल खेलते हुए गुजारी.
जब वे चलने लगे तो रेनू ने कहा,
“मुझे बड़ी खुशी है की हम लोगों का परिचय इतनी जल्दी तुम लोगों से हो गया. बड़ा अच्छा हो की और 4-5 कपल्स हमारे खेल में शामिल हो सकते. तुम लोगों किसी और कपल्स को जानते हो जो इसमें शामिल हो सकें? मैं अगले हफ्ते नया जॉब पर स्टार्ट कर रही हूँ. वहां पर मैं और लोगों को अन्दर लाने की कोशिश करूंगी. जल्द ही हमारे पास एक बड़ा और बढ़िया सा ग्रुप होगा. बहुत मजा आएगा न? हम यहाँ पर पार्टी करेंगे. हम हिल स्टेशन पर जा कर पार्टी करेंगे”
सब लोगों ने फिर से किस किया एक दुसरे के बदन को अच्छे से छुआ. उन्होंने अगले हफ्ते की पार्टी विवेक और कविता के घर पर तय की. चारों लोग अपनी इस नयी शुरुआत से बड़े खुश थे. वो जानते थे कि आने वाला समय उस सबके जीवन में नए नए आनंद ले कर आने वाला था और सब लोग इस बात से बड़े खुश थे.
आज की शाम को पड़ोसियों के घर जम कर सेक्सी पार्टी करने के बाद, कविता और विवेक धीरे धीरे घर की तरफ टहलते हुए जा रहे थे. थोड़े देर के लिये दोनों खामोश थे. शायद सोच भी नहीं प् रहे थे की पिछले ३-४ घंटे में जो भी हुआ है he सच में हुआ है या सम्पना था. शायद दोनों ही इस बात का इंतज़ार कर रहे थे की दूसरा बोले. यह उनका स्वैप का पहला अनुभव था. उन्हें खुशी थी की उनका पहला अनुभव इतना अच्छा गया.
विवेक मौन भंग करते हुए बोला, "कविता."
"यस डार्लिंग!"
"आज रात की इस पार्टी में तुम्हें मजा आया की नहीं?"
"बहुत ज्यादा मज़ा आया विवेक, तुम्हें तो मालूम है कि मुझे तुम्हारे सामने किसी दुसरे मर्द से चुदने का कितने सालों से इंतज़ार था. मेरा गौरव से चुदना, फिर तुमसे चुदना फिर तुम दोनों से एक साथ चुदना...और रेनू की का मेरी चूत को चाटना और मेरा उसकी चूत को चाटना...मुझे तो अभी भी मेरी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा है.“
(पाठक ये सब कैसे हुआ पिछले भाग में पढ़ सकते हैं)
कविता बोलती जा रही थी,
“हम लोगों ने अगले हफ्ते मिलने का प्लान तो किया है. पर मेरा मन तो उससे पहले एक बार और मिलने का हो रहा है विवेक....मतलब कल राट ही मिलें उसने फिर से?”
विवेक ने स्वीकृति दी,
"बढ़िया आईडिया है ये. मुझे लगता है कि वो मान जायेंगे. हमारे पडोसी हमसे कहीं से कम चुदक्कड़ नहीं हैं. वो चोदने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे. मैं उन्हें कॉल कर के कल सुबह ही बुला लूँगा डार्लिंग!”
दोनों एक बार फिर से शांत हो गए
"विवेक"
"हाँ जी"
"तुन्हें मुझे गौरव मुझे चोदते हुए देख कर कैसा लगा था?"
"मुझे बड़ा ही हॉट लगा बेबी डॉल. दुसरे आदमी का लौंडा तिम्हारी चूत में जाते देख कर मेरा लंड तो बहुत जोर से खड़ा हो गया. अब मैं तुम्हें दो आदमियों से इकठ्ठे चुदते हुए देखना चाहता हूँ. जैसे गौरव और मैंने तुम्हारी और रेनू की डबल-चुदाई की, ठीक वैसे ही. कुछ और लोगों का इंतज़ाम करना पड़ेगा अगली पार्टी के लिए”
"ओह, मुझे भी वो करना है. तुम्हें पता है जब गौरव मुझे चोद रहा था और तुम वहां बैठ कर अपना लंड हाथ से धीरे धीरे हिलाते हुए मुझे चुदते हुए देख रहे थे, मैं जितना जोर से झड़ी की पूरे जीवन में उतना जोर से नहीं नहीं झड़ी थी. तुम्हारा मुझे देखना एक कमाल का अनुभव था विवेक.”
“हाँ.. आज की रात बड़े मजे की राट थी बेबी डॉल.”
“और, जब मैं और रेनू एक दुसरे के ऊपर लेट कर एक दुसरे की चूत चाट रहे थे, तुम्हें मजा आया होगा न?”
"बहुत मजा आया कविता. जीवन मजे लेने के लिए है. मुझे बड़ी खुशी है की तुमने आज किसी औरत को चोदने का नया अनुभव प्राप्त किया"
"और मुझे बड़ा मजा आया जब तुम और रेनू चोद रहे थे, और बाद में जब तुमने और गौरव दोनों ने
रेनू की डबल-चुदाई की, तब तो कमाल ही हो गया."
"बिलकुल सही बोला"
"विवेक मुझे चुदाई बड़ी अच्छी लगती है, कभी कभी ऐसा लगता है जैसे मेरा मन करता है कि किसी को भी चोद डालूँ”
"हाँ कविता, इस मामले में मैं भी कुछ ऐसा ही हूँ. जब सेक्स इतना आनंद देने वाला काम है तो पता नहीं दुनिया ने इसमें इतनी रोक टोक क्यों लगा रखी है. केवल अपनी बीवी को चोदो...किसी और की तरफ बुरी नज़र से मत देखो...मुझे ये सारे नियम बेकार के लगते हैं. मुझे लगता है पड़ोसियों के साथ सेक्स कर के हमारे लिए एक नयी दुनिया दी खुल चुकी है. और अब ये हमारे ऊपर है की हम इस नयी दुनिया का कितना आनंद लें.”
"काश की ये सब ऐसे ही चलता रहे. मैं तो बस अब किसी भी चीज के लिए हमेशा तैयार हूँ. जो भी सामने आएगा.. मैं एक बार कोशिश जरूर करूंगी करने के लिए....तुम्हें कैसा लगेगा की मैं माल जाऊं और किसी बिलकुल अजनबी से आदमी से चुद लूं? ... जब भी मैं इस बारे में सोचती हूँ, मेरा मन बेचैन हो जाता है."
"ओह, सही जा रही हो बेबी डॉल.... मैं देखना या फिर कम से कम इस बारे में सुनना तो जरूर चाहूंगा. मेरी तरफ से तुम्हें खुली छूट है कविता."
जैसे ही उन्होंने घर का दरवाजा खोला, सायरा सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी. उसके चेहरे पर ऐसा की लुक था जैसे बिल्ली के दूध पीने के बाद का होता है.
विवेक मुस्कराया और कविता के कानों में फुसफुसाया, "मैं सायरा को उसके घर तक छोड के आता हूँ. अगर देर लगे तो तुम सो जाना प्लीज"
"विवेक, क्या तुम कुछ नया शुरू करने वाले हो?" वो वापस फुसफुसाई.
"आज के दिन तो कुछ भी हो सकता है."
"हाँ, आज के दिन तो सही में कुछ भी हो सकता है. खैर, बाद में मुझे पूरी कहानी सुनानी पड़ेगी"
"ओह.. जरूर"
जैसे जी सायरा नीचे उस तक पहुची, विवेक ने उसके लिए दरवाजा खोला और बोला,
"क्या मैं इस खूबसूरत और जवान लडकी सायरा को उसके घर तक छोड़ दूँ?”
"ह्म्म्म जरूर मिस्टर वी."
जैसे ही दरवाजा बंद हुआ. विवेक ने अपना हाथ सायरा की पतली कमर में डाल दिया और सायरा को अपनी बाहों में खींच लिया. उसका जवान जिस्म एक पल में विवेक के अनुभवी बदन से टकराया, उनके होठ आपस में मिले और दोनों के बीच का पहला और गहरा चुम्बन लिया गया. जैसे ही चुम्बन ख़त्म हुआ, विवेक को ये बात अच्छी तरह से समझा आ गयी की सायरा अभी अभी चूत चाट कर आयी है. चूँकि सायरा पिछले ३-४ घंटे से उसकी बेटी तृषा के साथ थी, विवेक को ये समझने में देर नहीं लगी की उसके होठों पर किसकी चूत का रस लगा हुआ है.
"सायरा तुम हो बड़ी हॉट. मैं तो जैसे जलने लगा हूँ. तुमने बताया था की मुंबई में तुम्हारी सहेलियों के पापा तुम्हारा अच्छे दोस्त हुआ करते थे. क्या इसका ये मतलब है की वहां के अंकल लोग और तुम आपस में ....”
“सेक्स करते थे मिस्टर वी”, सायरा ने बेबाकी से विवेक का वाक्य पूरा किया.
"तो मैं भी तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ सायरा"
"मुझे मालूम है मिस्टर वी...वो लोग मुझे थोडा पॉकेट मनी भी देते थे"
“मैं भी दूंगा”
“और कभी कभी सिगरेट भी पिलाते थे”
“ओह सिगरेट? ये लो” विवेक ने पैकेट निकाल कर दिया.
सायरा ने एक सिगरेट निकाल कर होठों पर लगाया और जलाया. पहला काश जोर से खींचा और फिर से विवेक के होठों पर होठ रख कर चुम्मा लेते हुए सारा का सारा धुँआ विवेक के मुंह के अन्दर फूंक दिया. विवेक को सायरा की ये अदा ऐसी भाई की उसका लंड एक टाइट हो गया.
विवेक ने भी एक सिगरेट जला ली.
“मेरे मम्मी पापा कैसे लगे मिस्टर वी?”
“ओह.. बहुत खूब लगे. हमें बड़ी खुशी है की तुम्हारे जैसे फॅमिली यहाँ रहने आयी है.”
“पापा ने कविता आंटी को मजा दिया की नहीं?”
“अरे भरपूर दिया सायरा. क्या तुम अपने पापा मम्मी के साथ भी?”
सायरा ने धुएं का कश छोड़ते हुए बोला, “मेरे परिवार में सब लोग बड़े ओपन माइंडेड हैं. इस लिए जब जिसका जो मन करता है, दुसरे को उससे कोई तकलीफ नहीं होती है.”
“ओह.. अच्छा ...” विवेक तो जैसे हकला रहा था.
“और मैंने तृषा को ये सब बता दिया है..ताकि आपको आगे बढ़ने में थोडा आराम रहे मिस्टर वी”
“थैंक यू सायरा” विवेक की जैसे बांछे ही खिल गयीं.
दोनों की सिगरेट अब ख़तम हो गए थी.
“तो चलें अब?”
“जरूर”
विवेक और सायरा लगभग दौड़ते हुए सायरा के घर में घुसे. घुसते ही विवेक ने अपने हाथ तृषा के स्कर्ट में दाल के उसके नंगी बुर सहलानी शुरू कर दी. सायरा अपनी मिनी स्कर्ट के नीचे कुछ नहीं पहना था. विवेक के शॉर्ट्स अपन आप जमीन पर गिर गए. विवेक ने उसका टॉप उतार कर के उसकी जवान चुन्चियों को आज़ाद कर दिया. अब तक दोनों एकदम नंगे हो चुके थे. विवेक ने देखा की सायरा को जितना उसने सोचा था वो उससे भी कहीं ज्यादा सेक्सी और हॉट थी.
सायरा बोली,
"ओह यस मिस्टर वी, प्लीज मुझे चोदो...जल्दी."
विवेक ने सायरा को आगे की तरफ झुकाया और अपने लंड को उसकी गांड के तरफ से चूत के मुहाने पर टिकाया. सायरा की चूत पहले से ही गीली थी. विवेक ने सोचा की हो सकता है की तृषा ने भी सायरा की चूत चाटी हो और इसकी वज़ह से ये गीली हुई हो.
सायरा ने अपनी गांड पीछे की तरफ ठेली जिससे विवेक का लंड आधा घुस गया.
“ओह मिस्टर वी..प्लीज डालो पूरा..”
विवेक ने अगले ही धक्के में पूरा पेल दिया. वो जानता था कि जवानी में चुदाई का बड़ा उन्माद होता है. सो उसने जल्दी जल्दी धक्के लगाने शुरु कर दिए. सायरा का ये पहला टाइम तो था नहीं मोटे और लम्बे लंड लेने का, सो वो बड़े ही मजे ले कर चुदाई करवाने लगी. थोड़ी ही देर में सायरा झड गयी. तो उसने विवेक का लंड अपनी चूत ने निकाल लिया. वो घुटने के बल बैठ गयी, विवेक का लंड अपने हाथों में लिया और बोली,
“मुझे चूत के रस से सना हुआ लंड बड़ा स्वादिष्ट लगता है”
वह विवेक का लंड अपने मुंह में लेकर उसे मुंह से चोदने लगी. जवान मुंह की गर्मी और गीलपन से विवेक थोड़ी ही देर में झड गया. सायरा विवेक का पूरा वीर्य अपने मुंह में ले कर पी गयी.