रद्दी वाला
Posted: Mon Jan 06, 2025 10:35 am
रचयिता: काजल गुप्ता
यह कहानी है सक्सेना परिवार की। इस परिवार के मुखिया, सुदर्शन सक्सेना, ४५ वर्ष के आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं। आज से २० साल पहले उनका विवाह ज्वाला से हुआ था। ज्वाला जैसा नाम वैसी ही थी। वह काम (सैक्स) की साक्षात दहकती ज्वाला थी। विवाह के समय ज्वाला २० वर्ष की थी। विवाह के १ साल बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया। आज वह लड़की, रंजना १९ साल की है और अपनी मां की तरह ही आग का एक शोला बन चुकी है। ज्वाला देवी नहा रही हैं और रंजना सोफ़े पर बैठी पढ़ रही है और सुदर्शन जी अपने ऑफिस जा चुके हैं। तभी वातावरण की शांति भंग हुई। “कॉपी, किताब, अखबार वाली रद्दी..!!!!!!” ये आवाज़ जैसे ही ज्वाला देवी के कानों में पड़ी तो उसने बाथरूम से ही चिल्ला कर अपनी १९ वर्षीय जवान लड़की, रंजना से कहा, “बेटी रंजना! ज़रा रद्दी वाले को रोक, मैं नहा कर आती हूँ।”
“अच्छा मम्मी!” रंजना जवाब दे कर भागती हुई बाहर के दरवाजे पर आ कर चिल्लाई।
“अरे भाई रद्दी वाले! अखबार की रद्दी क्या भाव लोगे?”
“जी बीबी जी! ढाई रुपये किलो।” कबाड़ी लड़के बिरजु ने अपनी साईकल कोठी के कम्पाउन्ड मे ला कर खड़ी कर दी।
“ढाई तो कम हैं, सही लगाओ।” रंजना उससे भाव करते हुए बोली।
“आप जो कहेंगी, लगा दूँगा।” बिरजु होठों पर जीभ फ़िरा कर और मुसकुरा कर बोला।
इस दो-अर्थी डायलॉग को सुन कर तथा बिरजु के बात करने के लहजे को देख कर रंजना शरम से पानी पानी हो उठी, और नज़रें झुका कर बोली, “तुम ज़रा रुको, मम्मी आती है अभी।” बिरजु को बाहर ही खड़ा कर रंजना अंदर आ गयी और अपने कमरे में जा कर ज़ोर से बोली, “मम्मी मुझे कॉलेज के लिये देर हो रही है, मैं तैयार होती हूँ, रद्दी वाला बाहर खड़ा है।”
“बेटा! अभी ठहर तू, मैं नहा कर आती ही हूँ।” ज्वाला देवी ने फिर चिल्ला कर कहा। अपने कमरे में बैठी रंजना सोच रही थी की कितना बदमाश है ये रद्दी वाला, “लगाने” की बात कितनी बेशर्मी से कर रहा था पाजी! वैसे “लगाने” का अर्थ रंजना अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि एक दिन उसने अपने डैड्डी को मम्मी से बेडरूम में ये कहते सुना था, “ज्वाला टाँग उठाओ, मैं अब लगाऊँगा।” और रंजना ने यह अजीब डायलॉग सुन कर उत्सुकता से मम्मी के बेडरूम में झांक कर जो कुछ उस दिन अंदर देखा था, उसी दिन से “लगाने” का अर्थ बहुत ही अच्छी तरह उसकी समझ में आ गया था। कई बार उसके मन में भी “लगवाने” की इच्छा पैदा हुई थी मगर बेचारी मुकद्दर की मारी खूबसुरत चूत की मालकिन रंजना को “लगाने वाला” अभी तक कोई नहीं मिल पाया था।
जल्दी से नहा धो कर ज्वाला देवी सिर्फ़ गाउन और ऊँची ऐड़ी की चप्पल पहन कर बाहर आयी, उसके बाल इस समय खुले हुए थे, नहाने के कारण गोरा रंग और भी ज्यादा दमक उठा था। यूँ लग रहा था मानो काली घटाओं में से चांद निकल आया है। एक ही बच्चा पैदा करने की वजह से ४० वर्ष की उम्र में भी ज्वाला देवी २५ साल की जवान लौन्डिया को भी मात कर सकती थी। बाहर आते ही वो बिरजु से बोली, “हाँ भाई! ठीक-ठीक बता, क्या भाव लेगा?”
“मेम साहब! ३ रुपये लगा दूँगा, इससे ऊपर मैं तो क्या कोई भी नहीं लेगा।” बिरजु गम्भीरता से बोला।
“अच्छा ! तू बरामदे में बैठ मैं लाती हूँ” ज्वाला देवी अंदर आ गयी, और रंजना से बोली, “रंजना बेटा! ज़रा थोड़े थोड़े अखबार ला कर बरमदे में रख।”
“अच्छा मम्मी लाती हूँ” रंजना ने कहा। रंजना ने अखबार ला कर बरामदे में रखने शुरु कर दिये थे, और ज्वाला देवी बाहर बिरजु के सामने ऊँची ऐड़ी की चप्पलों पे उकड़ू बैठ कर बोली, “चल भाई तौल” बिरजु ने अपना तराज़ु निकाल और एक एक किलो के बट्टे से उसने रद्दी तौलनी शुरु कर दी। एकाएक तौलते तौलते उसकी निगाह उकड़ु बैठी ज्वाला देवी की धुली धुलाई चूत पर पड़ी तो उसके हाथ कांप उठे। ज्वाला देवी के यूँ उकड़ु बैठने से टांगे तो सारी ढकी रहीं मगर अपने खुले फ़ाटक से वो बिल्कुल ही अनभिज्ञ थीं। उसे क्या पता था कि उसकी शानदार चूत के दर्शन ये रद्दी वाला तबियत से कर रहा था। उसका दिमाग तो बस तराज़ु की डन्डी व पलड़ों पर ही लगा हुआ था। अचानक वो बोली, “भाई सही तौल”
“लो मेम साहब” बिरजु हड़बड़ा कर बोला। और अब आलम ये था की एक-एक किलो में तीन तीन पाव तौल रहा था बिरजु। उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था, हाथ और भी ज्यादा कंपकंपाते जा रहे थे, तथा आंखें फ़ैलती जा रही थीं उसकी। उसकी १८ वर्षीय जवानी चूत देख कर धधक उठी थी। मगर ज्वाला देवी अभी तक नहीं समझ पा रही थी कि बिरजु रद्दी कम और चूत ज्यादा तौल रहा है। और जैसे ही बिरजु के बराबर रंजना आ कर खड़ी हुई और उसे यूँ कांपते तराज़ु पर कम और सामने ज्यादा नज़रें गड़ाये हुए देखा तो उसकी नज़रें भी अपनी मम्मी की खुली चूत पर जा ठहरीं। ये दृष्य देख कर रंजना का बुरा हाल हो गया, वो खांसते हुए बोली, “मम्मी.. आप उठिये, मैं तुलवाती हूँ।”
“तू चुप कर! मैं ठीक तुलवा रही हूँ।”
“मम्मी! समझो न, ओफ़्फ़! आप उठिये तो सही।” और इस बार रंजना ने ज़िद्द करके ज्वाला देवी के कंधे पर चिकोटी काट कर कहा तो वो कुछ-कुछ चौंकी। रंजना की इस हरकत पर ज्वाला देवी ने सरसरी नज़र से बिरजु को देखा और फिर झुक कर जो उसने अपने नीचे को देखा तो वो हड़बड़ा कर रह गयी। फ़ौरन खड़ी हो कर गुस्से और शरम मे हकलाते हुए वो बोली, “देखो भाई! ज़रा जल्दी तौलो।” इस समय ज्वाला देवी की हालत देखने लायक थी, उसके होंठ थरथरा रहे थे, कनपट्टियां गुलाबी हो उठी थीं तथा टांगों में एक कंपकपी सी उठती उसे लग रही थी। बिरजु से नज़र मिलाना उसे अब दुभर जान पड़ रहा था। शरम से पानी-पानी हो गयी थी वो।
बेचारे बिरजु की हालत भी खराब हुई जा रही थी। उसका लंड हाफ़ पैंट में खड़ा हो कर उछालें मार रहा था, जिसे कनखियों से बार-बार ज्वाला देवी देखे जा रही थी। सारी रद्दी फ़टाफ़ट तुलवा कर वो रंजना की तरफ़ देख कर बोली, “तू अंदर जा, यहाँ खड़ी खड़ी क्या कर रही है?” मुँह में अंगुली दबा कर रंजना तो अंदर चली गयी और बिरजु हिसाब लगा कर ज्वाला देवी को पैसे देने लगा। हिसाब में १० रुपये फ़ालतू वह घबड़ाहट में दे गया था। और जैसे ही वो लंड जाँघों से दबाता हुआ रद्दी की पोटली बांधने लगा कि ज्वाला देवी उससे बोली, “क्यों भाई कुछ खाली बोतलें पड़ी हैं, ले लोगे क्या?”
“अभी तो मेरी साईकल पर जगह नहीं है मेम साहब, कल ले जाऊँगा।” बिरजु हकलाता हुआ बोला।
“तो सुन, कल ११ बजे के बाद ही आना।”
“जी आ जाऊँगा।” वो मुसकुरा कर बोला था इस बार। रद्दी की पोटली को साईकल के कैरीयर पर रख कर बिरजु वहां से चलता बना मगर उसकी आंखों के सामने अभी तक ज्वाला देवी का खुला फ़ाटक यानि की शानदार चूत घूम रही थी। बिरजु के जाते ही ज्वाला देवी रुपये ले कर अंदर आ गयी। ज्वाला देवी जैसे ही रंजना के कमरे में पहुंची तो बेटी की बात सुन कर वो और ज्यादा झेंप उठी थी। रंजना ने आंखे फ़ाड़ कर उससे कहा, “मम्मी! आपकी वो वाली जगह वो रद्दी वाला बड़ी बेशर्मी से देखे जा रहा था।”
“चल छोड़! हमारा क्या ले गया वो, तू अपना काम कर, गन्दी गन्दी बातें नहीं सोचा करते, जा कॉलेज जा तू।”
थोड़ी देर बाद रंजना कॉलेज चली गयी और ज्वाला देवी अपनी चूची को मसलती हुई फ़ोन की तरफ़ बढ़ी। अपने पति सुदर्शन सक्सेना का नम्बर डायल कर वो दूसरी तरफ़ से आने वाली आवाज़ का इंतज़ार करने लगी। अगले पल फ़ोन पर एक आवाज़ उभरी
“येस सुदर्शन हेयर”
“देखिये ! आप फ़ौरन चले आइये, बहुत जरूरी काम है मुझे”
“अरे ज्वाला ! तुम्हे ये अचानक मुझसे क्या काम आन पड़ा... अभी तो आ कर बैठा हूँ, ऑफिस में बहुत काम पड़े हैं, आखिर माजरा क्या है?”
“जी। बस आपसे बातें करने को बहुत मन कर आया है, रहा नहीं जा रहा, प्लीज़ आ जाओ ना।”
“सॉरी ज्वाला ! मैं शाम को ही आ पाऊँगा, जितनी बातें करनी हो शाम को कर लेना, ओके।”
अपने पति के व्यवहार से वो तिलमिला कर रह गयी। एक कमसिन नौजवान लौंडे के सामने अनभिज्ञता में ही सही; अपनी चूत प्रदर्शन से वो बेहद कामातूर हो उठी थी। चूत की ज्वाला में वो झुलसी जा रही थी इस समय। वो रसोई घर में जा कर एक बड़ा सा बैंगन उठा कर उसे निहारने लगी। उसके बाद सीधे बेडरूम में आ कर वो बिस्तर पर लेट गयी, गाउन ऊपर उठा कर उसने टांगों को चौड़ाया और चूत के मुँह पर बैंगन रख कर ज़ोर से उसे दबाया।
“हाइ.. उफ़्फ़.. मर गयी... अहह.. आह। ऊहह...” आधा बैंगन वो चूत में घुसा चुकी थी। मस्ती में अपने निचले होंठ को चबाते हुए उसने ज़ोर ज़ोर से बैंगन द्वारा अपनी चूत चोदनी शुरु कर ही डाली। ५ मिनट तक लगातार तेज़ी से वो उसे अपनी चूत में पेलती रही, झड़ते वक्त वो अनाप शनाप बकने लगी थी। “आहह। मज़ा। आ.. गया..हाय। रद्दी वाले.. तू ही चोद .. जाता .. तो .. तेरा .. क्या .. बिगड़ .. जाता .. उफ़। आह..ले.. आह.. क्या लंड था तेरा ... तुझे कल दूँगी .. अहह.. साले पति देव ... मत चोद मुझे ... आह.. मैं .. खुद काम चला लूँगी .. अहह!”
ज्वाला देवी इस समय चूत से पानी छोड़ती जा रही थी, अच्छी तरह झड़ कर उसने बैंगन फेंक दिया और चूत पोंछ कर गाउन नीचे कर लिया। मन ही मन वो बुदबुदा उठी थी, “साले पतिदेव, गैरों को चोदने का वक्त है तेरे पास, मगर मेरे को चोदने के लिये तेरे पास वक्त नहीं है, शादी के बाद एक लड़की पैदा करने के अलावा तूने किया ही क्या है, तेरी जगह अगर कोई और होता तो अब तक मुझे ६ बच्चों की मां बना चुका होता, मगर तू तो हफ़्ते में दो बार मुझे मुश्किल से चोदता है, खैर कोई बात नहीं, अब अपनी चूत की खुराक का इन्तज़ाम मुझे ही करना पड़ेगा।”
ज्वाला देवी ने फ़ैसला कर लिया कि वो इस गठीले शरीर वाले रद्दी वाले के लंड से जी भर कर अपनी चूत मरवायेगी। उसने सोचा जब साला चूत के दर्शन कर ही गया है तो फिर चूत मराने में ऐतराज़ ही क्या?
उधर ऑफिस में सुदर्शन जी बैठे हुए अपनी खूबसुरत जवान स्टेनो मिस शाज़िया के खयालो में डूबे हुए थे। ज्वाला के फ़ोन से वे समझ गये थे की साली अधेढ़ बीवी की चूत में खुजली चल पड़ी होगी। यह सोच ही उनका लंड खड़ा कर देने के लिये काफ़ी थी। उन्होने घन्टी बजा कर चपरासी को बुलाया और बोले, “देखो भजन! जल्दी से शाज़िया को फ़ाईल ले कर भेजो।”
“जी बहुत अच्छा साहब!” भजन तेज़ी से पलटा और मिस शाज़िया के पास आ कर बोला, “बड़े साहब ने फ़ाईल ले कर आपको बुलाया है।” मिस शाज़िया फ़ुर्ती से एक फ़ाईल उठा कर खड़ी हो गयी और अपनी स्कर्ट ठीक ठाक कर तेज़ चाल से अपनी सैंडल खटखटाती उस कमरे में जा घुसी जिस के बाहर लिखा था “बिना आज्ञा अंदर आना मना है!” कमरे में सुदर्शन जी बैठे हुए थे। शाज़िया २२ साल की मस्त लड़की उनके पूराने स्टाफ़ खान साहब की लड़की थी। खान साहब की उमर हो गयी और वे रिटायर हो गये। रिटायर्मेंट के वक्त खान साहब ने सुदर्शनजी से विनती की कि वे उनकी लड़की को अपने यहाँ सर्विस पे रख लें। शाज़िया को देखते ही सुदर्शनजी ने फ़ौरन हाँ कर दी। शाज़िया बड़ी मनचली लड़की थी। वो सुदर्शनजी की प्रारम्भिक छेड़छाड़ का हँस कर साथ देने लगी। और फिर नतीजा यह हुआ की वह उनकी एक रखैल बन कर रह गयी।
“आओ मिस शाज़िया! ठहरो दरवाजा लॉक कर आओ, हरी अप।” शाज़िया को देखते ही उचक कर वो बोले। दरवाजा लॉक कर शाज़िया जैसे ही सामने वाली कुर्सी पर बैठने लगी तो सुदर्शन जी अपनी पैंट की ज़िप खोल कर उसमें हाथ डाल अपना फ़नफ़नाता हुआ खूंटे की तरह तना हुआ लंड निकाल कर बोले, “ओह नो शाज़िया! जल्दी से अपनी पैंटी उतार कर हमारी गोद में बैठ कर इसे अपनी चूत में ले लो।”
“सर! आज सुबह-सुबह! चक्कर क्या है डीयर?” खड़ी हो कर अपनी स्कर्ट को उपर उठा पैंटी टांगों से बाहर निकालते हुए शाज़िया बोली।
“बस डार्लिंग मूड कर आया!, हरी अप! ओह।” सुदर्शन जी भारी गाँड वाली बेहद खूबसूरत शाज़िया की चूत में लंड डालने को बेताब हुए जा रहे थे।
“लो आती हूँ मॉय लव” शाज़िया उनके पास आयी और उसने अपनी स्कर्ट ऊपर उठा कर कुर्सी पर बैठे सुदर्शन जी की गोद में कुछ आधी हो कर इस अंदाज़ में बैठना शुरु किया कि खड़ा लंड उसकी चूत के मुँह पर आ लगा था।
“अब ज़ोर से बैठो, लंड ठीक जगह लगा है” सुदर्शन जी ने शाज़िया को आज्ञा दी। वो उनकी आज्ञा मान कर इतनी ज़ोर से चूत को दबाते हुए लंड पर बैठने लगी कि सारा लंड उसकी चूत में उतरता हुआ फ़िट हो चुका था। पूरा लंड चूत में घुसवा कर बड़े इतमिनान से गोद में बैठ अपनी गाँड को हिलाती हुई दोनों बाँहें सुदर्शन जी के गले में डाल कर वो बोली, “आह.. बड़ा.. अच्छा.. लग। रहा .. है सर... ओफ़्फ़। ओह.. मुझे.. भींच लो.. ज़ोरर.. से।”
फिर क्या था, दोनों तने हुए मम्मों को उसके खुले गले के अंदर हाथ डाल कर उन्होने पकड़ लिया और सफ़ाचट खुशबुदार बगलों को चूमते हुए उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ते हुए वो बोले, “डार्लिंग!! तुम्हारी चूत मुझे इतनी अच्छी लगती है की मैं अपनी बीवी की चूत को भी भूल चुका हूँ, आह! अब ज़ोर ज़ोर..उछलो डार्लिंग।”
“सर चूत तो हर औरत के पास एक जैसी ही होती है, बस चुदवाने के अंदाज़ अलग अलग होते हैं, मेरे अंदाज़ आपको पसन्द आ गये हैं, क्यों?”
“हाँ । हाँ अब उछलो जल्दी से ..” और फिर गोद में बैठी शाज़िया ने जो सिसक सिसक कर लंड अपनी चूत में पिलवाना शुरु किया तो सुदर्शन जी मज़े में दोहरे हो उठे, उन्होने कुर्सी पर अपनी गाँड उछाल उछाल कर चोदना शुरु कर दिया था। शाज़िया ज़ोर से उनकी गर्दन में बाँहें डाले हिला-हिला कर झूले पर बैठी झोंटे ले रही थी। हर झोंटे में उसकी चूत पूरा-पूरा लंड निगल रही थी। सुदर्शन जी ने उसका सारा मुँह चूस-चूस कर गीला कर डाला था। अचानक वो बहुत ज़ोर-ज़ोर से लंड को अपनी चूत के अंदर बाहर लेते हुई बोल उठी थी, “उफ़्फ़.. आहा.. बड़ा मज़ा आ .. रह.. है .. आह.. मैं गयी..”
सुदर्शन जी मौके की नज़ाकत को ताड़ गये और शाज़िया की पीछे से कोली भर कर कुर्सी से उठ खड़े हुए और तेज़ तेज़ शॉट मारते हुए बोले, “लो.. मेरी । जान.. और .. आह लो.. मैं .. भी .. झड़ने वाला हूँ.. ओफ़। आहह लो.. जान.. मज़ा.. आ.. गया..” और शाज़िया की चूत से निकलते हुए रज से उनका वीर्य जा टकराया। शाज़िया पीछे को गाँड पटकती हुई दोनो हाथों से अपने कूल्हे भींचती हुई झड़ रही थी। अच्छी तरह झड़ कर सुदर्शन जी ने उसकी चूत से लंड निकाल कर कहा, “जल्दी से पेशाब कर पैंटी पहन लो, स्टाफ़ के लोग इंतज़ार कर रहे होंगे, ज्यादा देर यहाँ तुम्हारा रहना ठीक नहीं है।” सुदर्शन जी के केबिन में बने पेशाब घर में शाज़िया ने मूत कर अपनी चूत रुमाल से खूब पोंछी और पैंटी पहन कर बोली, “आपकी दराज में मेरी लिप्स्टिक और पाउडर पड़ा है, ज़रा दे दिजीये प्लीज़,” सुदर्शन जी ने निकाल कर शाज़िया को दिया। इसके बाद शाज़िया तो सामने लगे शीशे में अपना मेकअप ठीक करने लगी, और सुदर्शन जी पेशाब घर में मूतने के लिये उठ खड़े हुए।
कुछ देर में ही शाज़िया पहले की तरह ताज़ी हो उठी थी, तथा सुदर्शनजी भी मूत कर लंड पैंट के अंदर कर ज़िप बंद कर चुके थे।
चुदाई इतनी सावधानी से की गयी थी की न शाज़िया की स्कर्ट पर कोई धब्बा पड़ा था और न सुदर्शनजी की पैंट कहीं से खराब हुई। एलर्ट हो कर सुदर्शन जी अपनी कुर्सी पर आ बैठे और शाज़िया फ़ाईल उठा, दरवाजा खोल उनके केबिन से बाहर निकल आयी। उसके चेहरे को देख कर स्टाफ़ का कोई भी आदमी नहीं ताड़ सका कि साली अभी-अभी चुदवा कर आ रही है। वो इस समय बड़ी भोली भाली और स्मार्ट दिखायी पड़ रही थी।
उधर बिरजु ने आज अपना दिन खराब कर डाला था। घर आ कर वो सीधा बाथरूम में घुस गया और दो बार ज्वाला देवी की चूत का नाम ले कर मुट्ठी मारी। मुट्ठी मारने के बाद भी वो उस चूत की छवि अपने जेहन से उतारने में अस्मर्थ रहा था। उसे तो असली खाल वाली जवान चूत मारने की इच्छा ने आ घेरा था। मगर उसके चारों तरफ़ कोई चूत वाली ऐसी नहीं थी जिसे चोद कर वो अपने लंड की आग बुझा सकता।
शाम को जब सुदर्शन जी ऑफिस से लौट आये। तो ज्वाला देवी चेहरा फ़ुलाये हुए थी। उसे यूँ गुस्से में भरे देख कर वो बोले, “लगता है रानी जी आज कुछ नाराज़ हैं हमसे!” “जाइये! मैं आपसे आज हर्गिज़ नहीं बोलूँगी।” ज्वाला देवी ने मुँह फ़ुला कर कहा, और काम में जुट गयी। रात को सुदर्शन जी डबल बिस्तर पर लेटे हुए थे। इस समय भी उन्हे अपनी पत्नी नहीं बल्कि शाज़िया की चूत की याद सता रही थी। सारे काम निपटा कर ज्वाला देवी ने रंजना के कमरे में झांक कर देखा और उसे गहरी नींद में सोये देख कर वो कुछ आश्वस्त हो कर सीधी पति के बराबर में जा लेटी। एक दो बार आंखे मूंदे पड़े पति को उसने कनखियों से झांक कर देखा और अपनी साड़ी उतार कर एक तरफ़ रख कर वो चुदने को मचल उठी। दिन भर की भड़ास वो रात भर में निकालने को उतावली हुई जा रही थी। कमरे में हल्की रौशनी नाईट लैम्प की थी। सुदर्शन जी की लुंगी की तरफ़ ज्वाला देवी ने आहिस्ता से हाथ बढ़ा ही दिया और कच्छे रहित लंड को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी। चौंक कर सुदर्शन जी उठ बैठे। यूँ पत्नी की हरकत पर झल्ला कर उन्होंने कहा, “ज्वाला अभी मूड नहीं है, छोड़ो इसे..”
“आज आपका मूड मैं ठीक करके ही रहुँगी, मेरी इच्छा का आपको ज़रा भी खयाल नहीं है लापरवाह कहीं के।” ज्वाला देवी सुदर्शन को ज़ोर से दबा कर अपने बदन को और भी आगे कर बोली। उसको यूँ चुदाई के लिये मचलते देख कर सुदर्शन जी का लंड भी सनसना उठा था। टाईट ब्लाऊज़ में से झांकते हुए आधे चूचे देख कर अपने लंड में खून का दौरा तेज़ होता हुआ जान पड़ रहा था। भावावेश में वो उससे लिपट पड़े और दोनों चूचियों को अपनी छाती पर दबा कर वो बोले, “लगता है आज कुछ ज्यादा ही मूड में हो डार्लिंग।”
“तीन दिन से आपने कौन से तीर मारे हैं, मैं अगर आज भी चुपचाप पड़ जाती तो तुम अपनी मर्ज़ी से तो कुछ करने वाले थे नहीं, मज़बूरन मुझे ही बेशर्म बनना पड़ रहा है।” अपनी दोनों चूचियों को पति के सीने से और भी ज्यादा दबाते हुए वो बोली।
“तुम तो बेकार में नाराज़ हो जाती हो, मैं तो तुम्हे रोज़ाना ही चोदना चाहता हूँ, मगर सोचता हूँ लड़की जवान हो रही है, अब ये सब हमे शोभा नहीं देता।” सुदर्शन जी उसके पेटिकोट के अंदर हाथ डालते हुए बोले। पेटिकोट का थोड़ा सा ऊपर उठना था कि उसकी गदरायी हुई गोरी जाँघ नाईट लैम्प की धुंधली रौशनी में चमक उठी। चिकनी जाँघ पर मज़े ले-ले कर हाथ फ़िराते हुए वो फिर बोले, “हाय! सच ज्वाला! तुम्हे देखते ही मेरा खड़ा हो जाता है, आहह! क्या गज़ब की जांघें हैं तुम्हारी पुच्च..!” इस बार उन्होंने जाँघ पर चुम्बी काटी थी। मर्दाने होंठ की अपनी चिकनी जाँघ पर यूँ चुम्बी पड़ती महसूस कर ज्वाला देवी की चूत में सनसनी और ज्यादा बुलंदी पर पहुँच उठी। चूत की पत्तियां अपने आप फ़ड़फ़ड़ा कर खुलती जा रही थीं। ये क्या? एकाएक सुदर्शन जी का हाथ खिसकता हुआ चूत पर आ गया। चूत पर यूँ हाथ के पड़ते ही ज्वाला देवी के मुँह से तेज़ सिसकारी निकल पड़ी।
“हाय। मेरे ... सनम.. ऊहह.. आज्ज्ज.. मुझे .. एक .. बच्चे .. कि.. माँ.. और.. बना .. दो..” और वो मचलती हुई ज्वाला को छोड़ अलग हट कर बोले, “ज्वाला! क्या बहकी-बहकी बातें कर रही हो, अब तुम्हारे बच्चे पैदा करने की उम्र नहीं रही, रंजना के ऊपर क्या असर पड़ेगा इन बातों का, कभी सोचा है तुमने?”
“सोचते-सोचते तो मेरी उम्र बीत गयी और तुमने ही कभी नहीं सोचा की रंजना का कोई भाई भी पैदा करना है।”
“छोड़ो ये सब बेकार की बातें, रंजना हमारी लड़की ही नहीं लड़का भी है। हम उसे ही दोनो का प्यार देंगे।” दोबार ज्वाला देवी की कोली भर कर उसे पुचकारते हुए वो बोले, उन्हे खतरा था कि कहीं इस चुदाई के समय ज्वाला उदास न हो जाये। अबकी बार वो तुनक कर बोली, “चलो बच्चे पैदा मत करो, मगर मेरी इच्छाओं का तो खयाल रखा करो, बच्चे के डर से तुम मेरे पास सोने तक से घबड़ाने लगे हो।”
“आइन्दा ऐसा नहीं होगा, मगर वादा करो की चुदाई के बाद तुम गर्भ निरोधक गोली जरूर खा लिया करोगी।”
“हाँ.. मेरे .. मालिक..! मैं ऐसा ही करूँगी पर मेरी प्यास जी भर कर बुझाते रहिएगा आप भी।” ज्वाला देवी उनसे लिपट पड़ी, उसे ज़ोर से पकड़ अपने लंड को उसकी गाँड से दबा कर वो बोले, “प्यास तो तुम्हारी मैं आज भी जी भर कर बुझाऊँगा मेरी जान .. पुच्च… पुच… पुच…” लगातार उसके गाल पर कई चुम्मी काट कर रख दी उन्होंने। इन चुम्बनों से ज्वाला इतनी गरम हो उठी की गाँड पर टकराते लंड को उसने हाथ में पकड़ कर कहा, “इसे जल्दी से मेरी गुफ़ा में डालो जी।”
“हाँ। हाँ। डालता .. हूँ.. पहले तुम्हे नंगी करके चुदाई के काबिल तो बना लूँ जान मेरी।” एक चूची ज़ोर से मसल डाली थी सुदर्शन जी ने, सिसक ही पड़ी थी बेचारी ज्वाला। सुदर्शन जी ने ज्वाला की कमर कस कर पकड़ी और आहिस्ता से अंगुलियां पेटिकोट के नाड़े पर ला कर जो उसे खींचा कि कूल्हों से फ़िसल कर गाँड नंगी करता हुआ पेटिकोट नीचे को फ़िसलता चला गया।
“वाह। भाई.. वाह.. आज तो बड़ी ही लपलपा रही है तुम्हारी! पुच्च!” मुँह नीचे करके चूत पर हौले से चुम्बी काट कर बोले। “अयी.. नहीं.. उफ़्फ़्फ़.. ये.. क्या .. कर दिया.. आ… एक.. बार.. और .. चूमो.. राजा.. अहह म्म्म स्स” चूत पर चुम्मी कटवाना ज्वाला देवी को इतना मज़ेदार लगा कि दोबारा चूत पर चुम्मी कटवाने के लिये वो मचल उठी थी।
“जल्दी नहीं रानी! खूब चूसुँगा आज मैं तुम्हारी चूत, खूब चाट-चाट कर पीयुँगा इसे मगर पहले अपना ब्लाऊज़ और पेटिकोट एकदम अपने बदन से अलग कर दो।”
“हाय रे ..मैं तो आधी से ज्यादा नंगी हो गयी सैंया.. तुम इस साली लुंगी को क्यों लपेटे पड़े हुए हो?” एक ज़ोरदार झटके से ज्वाला देवी पति की लुंगी उतारते हुए बोली। लुंगी के उतरते ही सुदर्शन जी का डंडे जैसा लंबा व मोटा लंड फ़नफ़ना उठा था। उसके यूँ फ़ुंकार सी छोड़ना देख कर ज्वाला देवी के तन-बदन में चुदाई और ज्यादा प्रज्वलित हो उठी। वो सीधी बैठ गयी और सिसक-सिसक कर पहले उसने अपना ब्लाऊज़ उतारा और फिर पेटिकोट को उतारते हुए वो लंड की तरफ़ देखते हुए मचल कर बोली, “हाय। अगर.. मुझे.. पता.. होता.. तो मैं .. पहले .. ही .. नंगी.. आ कर लेट जाती आप के पास.. आहह.. लो.. आ.. जाओ.. अब.. देर क्या है.. मेरी.. हर.. चीज़... नंगी हो चुकी है सैयां...!”
पेटिकोट पलंग से नीचे फेंक कर दोनों बाँहें पति की तरफ़ उठाते हुए वो बोली। सुदर्शन जी अपनी बनियान उतार कर बोले, “मेरा खयाल है पहले तुम्हारी चूत को मुँह में लेकर खूब चूसूँ” “हाँ। हाँ.. मैं भी यही चाहती हूँ जी.. जल्दी से .. लगालो इस पर अपना मुँह।” दोनो हाथों से चूत की फांक को चौड़ा कर वो सिसकारते हुए बोली।
“मेरा लंड भी तुम्हे चूसना पड़ेगा ज्वाला डार्लिंग।” अपनी आंखों की भवें ऊपर चढ़ाते हुए बोले। “चूसूँगी। मैं.. चूसूँगी.. ये तो मेरी ज़िन्दगी है ... आह.. इसे मैं नहीं चूसूँगी तो कौन चूसेगा, मगर पहले .. आहह आओओ.. न..” अपने होंठों को अपने आप ही चूसते हुए ज्वाला देवी उनके फ़नफ़नाते हुए लंड को देख कर बोली। उसका जी कर रह था कि अभी खड़ा लंड वो मुँह में भर ले और खूब चूसे मगर पहले वो अपनी चूत चुसवा-चुसवा कर मज़े लेने के चक्कर में थी। लंड चुसवाने का वादा ले सुदर्शन जी घुटने पलंग पर टेक दोनों हाथों से ज्वाला की जांघें कस कर पकड़ झुकते चले गये। और अगले पल उनके होंठ चूत की फांक पर जा टिके थे। लेटी हुई ज्वाला देवी ने अपने दोनों हाथ अपनी दोनों चूचियों पर जमा कर सिग्नल देते हुए कहा, “अब ज़ोर से .. चूसो.. जी.. यूँ.. कब.. तक होंठ रगड़ते रहोगे.. आह.. पी जाओ इसे।” पत्नी की इस मस्ती को देख कर सुदर्शन जी ने जोश में आ कर जो चूत की फाँकों पर काट-काट कर उन्हे चूसना शुरु किया तो वो वहशी बन उठी। खुशबुदार, बिना झांटों की दरार में बीच-बीच में अब वो जीभ फंसा देते तो मस्ती में बुरी तरह बेचैन सी हो उठती थी ज्वाला देवी। चूत को उछाल-उछाल कर वो पति के मुँह पर दबाते हुए चूत चुसवाने पर उतर आयी थी।
“ए..ऐए.. नहीं.. ई मैं.. नहीं.. आये..ए.. ये क्य.. आइइइ.. मर... जाऊँगी आहह। दाना मत चूसो जी.. उउफ़्फ़्फ़... आहह नहींईं..” सुदर्शन जी ने सोचा कि अगर वे चन्द मिनट और चूत चूसते रहे तो कहीं चूत पानी ही न छोड़ दे। कई बार ज्वाला का पानी वे जीभ से चूत को चाट-चाट कर निकाल चुके थे। इसलिये चूत से मुँह हटाना ही अब उन्होंने ज्यादा फायदेमंद समझा। जैसे ही चूत से मुँह हटा कर वो उठे तो ज्वाला देवी गीली चूत पर हाथ मलते हुए बोली, “ओह.. चूसनी क्यों बंद कर दी जी।”
“मैंने रात भर तुम्हारी चूत ही पीने का ठेका तो ले नहीं लिया, टाईम कम है, तुम्हे मेरा लंड भी चूसना है, मुझे तुम्हारी चूत भी मारनी है और बहुत से काम करने हैं, अब तुम अपनी न सोच मेरी सोचो यानि मेरा लंड चूसो, आयी बात समझ में।” सुदर्शन जी अपना लंड पकड़ कर उसे हिलाते हुए बोले, उनके लंड का सुपाड़ा इस समय फूल कर सुर्ख हुआ जा रहा था।
“मैं.. पीछे हटने वाली नहीं हूँ.. लाओ दो इसे मेरे मुँह में।” तुरंत अपना मुँह खोलते हुए ज्वाला देवी ने कहा। उसकी बात सुन कर सुदर्शन जी उसके मुँह के पास आ कर बैठ गये और एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उसके खुले मुँह में सुपाड़ा डाल कर वो बोले, “ले.. चूस.. चूस इसे साली लंड खोर हरामी।”
“उइए..उइई.. अहह..उउम्म।” आधा लंड मुँह में भर कर “उउम.. उउहहह” करती हुई वो उसे पीने लगी थी। लंड के चारों तरफ़ झांटों का झुर्मुट उसके मुँह पर घस्से से छोड़ रह था। जिससे एक मज़ेदार गुदगुदी से उठती हुई वो महसूस कर रही थी, चिकना व ताकतवर लंड चूसने में उसे बड़ा ही जायकेदार लग रहा था। जैसे-जैसे वो लंड चूसती जा रही थी, सुपाड़ा मुँह के अंदर और ज्यादा उछल-उछल कर टकरा रहा था। जब लंड की फुंकारें ज्यादा ही बुलंद हो उठीं तो सुदर्शन जी ने स्वयं ही अपना लंड उसके मुँह से निकाल कर कहा, “मैं अब एक पल भी अपने लंड को काबू में नहीं रख सकता ज्वाला.. जल्दी से इसे अपनी चूत में घुस जाने दो।”
“वाह.. मेरे सैंया… मैं भी तो यही चाह रही हूँ। आओ.. मेरी जाँघों के पास बैठो जी...” इस बार अपनी दोनों टाँगें ज्वाला देवी ऊपर उठा कर चुदने को पूर्ण तैयार हो उठी थी। सुदर्शन जी दोनों जाँघों के बीच में बैठे और उन्होंने लपलपाती गीली चूत के फड़फड़ाते छेद पर सुपाड़ा रख कर दबाना शुरु किया। अच्छी तरह लंड जमा कर एक टाँग उन्होंने ज्वाला देवी से अपने कंधे पर रखने को कहा, वो तो थी ही तैयार! फ़ौरन उसने एक टाँग फ़ुर्ती से पति के कंधे पर रख ली। चूत पर लगा लंड उसे मस्त किये जा रहा था। ज्वाला देवी दूसरी टाँग पहले की तरह ही मोड़े हुए थी। सुदर्शन जी ने थोड़ा सा झुक कर अपने हाथ दोनों चूचियों पर रख कर दबाते हुए ज़ोर लगा कर लंड जो अंदर पेलना शुरु किया कि फ़च की आवाज़ के साथ एक साँस में ही पूरा लंड उसकी चूत सटक गयी। मज़े में सुदर्शन जी ने उसकी चूचियां छोड़ ज़ोर से उसकी कोली भर कर धच-धच लंड चूत में पेलते हुए अटैक चालू कर दिये। ज्वाला देवी पति के लंड से चुदते हुए मस्त हुई जा रही थी। मोटा लंड चूत में घुसा बड़ा ही आराम दे रहा था। वो भी पति के दोनों कंधे पकड़ उछल-उछल कर चुद रही थी तथा मज़े में आ कर सिसकती हुई बक-बक कर रही थी, “आहह। ओहह। शाब्बास.. सनम.. रोज़.. चोदा करो.. वाहह तुम्म.. वाकय.. सच्चे... पति.. हो .. चोदो और चोदो.... ज़ोरर... से चोदो... उम्म्म... आ.. मज़ा.. आ.. रहा.. आ.. है जी.. और तेज़्ज़.... अहह..!” सुदर्शन जी मस्तानी चूत को घोटने के लिये जी जान एक किये जा रहे थे। वैसे तो उनका लंड काफ़ी फँस-फँस कर ज्वाला देवी की चूत में घुस रहा था मगर जो मज़ा शादी के पहले साल उन्हे आया था वो इस समय नहीं आ पा रहा था। खैर चूत भी तो अपनी ही चोदने के अलावा कोई चारा ही नहीं था।
उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो चूत नहीं मार रहे हैं बल्कि अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे हैं, न जाने उनका मज़ा क्यों गायब होता जा रहा था। वास्तविकता ये थी की शाज़िया की नयी-नयी जवान चूत जिसमें उनका लंड अत्यन्त टाईट जाया करता था उसकी याद उन्हे आ गयी थी। उनकी स्पीड और चोदने के ढंग में फ़र्क महसूस करती हुई ज्वाला देवी चुदते-चुदते ही बोली, “ओह.. ये। ढीले..से.. क्यों.. पड़.. रहे हैं.. आप.. उफ़्फ़.. मैं .. कहती हूँ.... ज़ोर.. से .. करो... आहह .. क्यों.. मज़ा .. खराब.. किये जा रहे हो जीइइइ... उउफ़्फ़..!”
“मेरे बच्चों की मां .. आहह.. ले.. तुझे.. खुश.. करके ही हटुँगा... मेरी.. अच्छी.. रानी.. ले.. और ले.. तेरी... चूत का... मैं अपने... लंड… से .... भोसड़ा... बना.. चुका हूँ… रन्डी.. और.. ले.. बड़ी अच्छी चूत हाय.. आह.. ले.. चोद.. कर रख दूँगा.. तुझे...” सुदर्शन जी बड़े ही करारे धक्के मार-मार कर अन्ट शन्ट बकते जा रहे थे। अचानक ज्वाला देवी बहुत ज़ोर से उनसे लिपट लिपट कर गाँड को उछालते हुए चुदने लगी। सुदर्शन जी भी उसका गाल पीते-पीते तेज़ रफ़्तार से उसे चोदने लगे थे। तभी ज्वाला देवी की चूत ने रज की धारा छोड़नी शुरु कर दी।
“ओह.. पति..देव... मेरे.. सैयां.. ओह.. देखो.. देखो.. हो.. गया..ए.. मैं.. गई...” और झड़ती हुई चूत पर मुश्किल से ८-१० धक्के और पड़े होंगे की सुदर्शन जी का लंड भी ज़ोरदार धार फेंक उठा। उनके लंड से वीर्य निकल-निकल कर ज्वाला देवी की चूत में गिर रहा था। मज़े में आ कर दोनों ने एक दूसरे को जकड़ डाला था। जब दोनों झड़ गये तो उनकी जकड़न खुद ढीली पड़ती चली गयी।
कुछ देर आराम में लिपटे हुए दोनों पड़े रहे और ज़ोर-ज़ोर से हांफ़ते रहे। करीब ५ मिनट बाद सुदर्शन जी, ज्वाला देवी की चूत से लंड निकाल कर उठे और मूतने के लिये बेडरूम से बाहर चले गये। ज्वाला देवी भी उठ कर उनके पीछे-पीछे ही चल दी थी। थोड़ी देर बाद दोनों आ कर बिस्तर पर लेट गये तो सुदर्शन जी बोले, “अब! मुझे नींद आ रही है डिस्टर्ब मत करना।”
“तो क्या आप दोबारा नहीं करेंगे?” भूखी हो कर ज्वाला देवी ने पूछा।
“अब बहुत हो गया… इतना ही काफ़ी है, तुम भी सो जाओ।” उन्होने लेटते हुए कहा। वास्तव में वे अब दोबारा इसलिये चुदाई नहीं करना चाहते थे क्योंकि शाज़िया के लिये भी थोड़ा बहुत मसाला उन्हे लंड में रखना जरूरी था। उनकी बात सुन कर ज्वाला देवी लेट तो गयी परंतु मन ही मन ताव में आ कर अपने आप से ही बोली, “मत चोद साले, कल तेरी ये अमानत रद्दी वाले को न सौंप दूँ तो ज्वाला देवी नाम नहीं मेरा। कल सारी कसर उसी से पूरी कर लुँगी साले।” सुदर्शन जी तो जल्दी ही सो गये थे, मगर ज्वाला देवी काफ़ी देर तक चूत की ज्वाला में सुलगती रही और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद उसकी आंखें झपकने पर आयी। वह भी नींद के आगोश में डूबती जा रही थी।
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अगले दिन ठीक ११ बजे बिरजु की आवाज़ ज्वाला देवी के कानो में पड़ी तो खुशी से उसका चेहरा खिल उठा। भागी-भागी वो बाहर के दरवाजे पर आयी। तब तक बिरजु भी ठीक उसके सामने आ कर बोला, “मेम साहब ! वो बोतल ले आओ, ले लुँगा।”
“सायकल इधर साईड में खड़ी करके अंदर आ जाओ और खुद ही उठा लो।” वो बोली।
“जी आया अभी” बिरजु सायकल बरामदे के बराबर में खड़ी कर ज्वाला देवी के पीछे पीछे आ गया। इस समय वह सोच रहा था की शायद आज भी बीवीजी की चूत के दर्शन हो जायें। मगर दिल पर काबू किये हुए था। ज्वाला देवी आज बहुत लंड मार दिखायी दे रही थी। पति व बेटी के जाते ही वह चुदाई की सारी तैयारी कर चुकी थी। उसे अब किसी का डर न रहा था। वो इस तरह तैयार हुई थी जैसे किसी पार्टी में जा रही हो। गुलाबी साड़ी और हल्के ब्लाऊज़ में उसका बदन और ज्यादा खिल उठा था। साथ ही उसने बहुत सुंदर मेक-अप किया था। हाथों में गुलाबी चुड़ियाँ और पैरों में चाँदी की पायल और सफेद रंग की ऊँची एड़ी की सैण्डल उसकी गुलाबी साड़ी से बहुत मेल खा रहे थे। ब्लाऊज़ के गले में से उसकी चूचियों का काफ़ी भाग झाँकता हुआ बिरजु साफ़ देख रहा था। चूचियाँ भींचने को उसका दिल मचलता जा रहा था। तभी ज्वाला देवी उसे अंदर ला कर दरवाजा बंद करते हुए बोली, “अब दूसरे कमरे में चलो, बोतलें वहीं रखी हैं।”
“जी, जी, मगर आपने दरवाजा क्यों बंद कर दिया?” बिरजु बेचारा हकला सा गया। घर की सजावट और ज्वाला देवी के इस अंदाज़ से वह हड़बड़ा सा गया। वो डरता हुआ वहीं रुक गया और बोला, “देखिये मेम साहब ! बोतलें यहीं ले आइये, मेरी सायकल बाहर खड़ी है।”
“अरे आओ न, तुझे सायकल मैं और दिलवा दूँगी।” बिरजु की बाँह पकड़ कर उसे जबरदस्ती अपने बेडरूम पर खींच लिया ज्वाला देवी ने। इस बार सारी बातें एकाएक वो समझ गया, मगर फिर भी वो कांपते हुए बोला, “देखिये, मैं गरीब आदमी हूँ जी, मुझे यहाँ से जाने दो, मेरे बाबा मुझे घर से निकाल देंगें।”
“अरे घबड़ाता क्यों है, मैं तुझे अपने पास रख लुँगी, आजा तुझे बोतलें दिखाऊँ, आजा ना।” ज्वाला देवी बिस्तर पर लेट कर अपनी बाँहें उसकी तरफ़ बढ़ा कर बड़े ही कामुक अंदाज़ में बोली।
“मैं… मगर.. बोतलें कहाँ है जी..” बिरजु बुरी तरह हड़बड़ा उठा।
“अरे ! लो ये रही बोतलें, अब देखो इसे जी भर कर मेरे जवान राजा।” अपनी साड़ी व पेटिकोट उपर उठा कर सफ़ाचट चूत दिखाती हुई ज्वाला देवी बड़ी बेहयाई से बोली।
वो मुस्कराते हुए बिरजु की मासूमियत पर झूम-झूम जा रही थी। चूत के दिखाते ही बिरजु का लंड हाफ़ पैन्ट में ही खड़ा हो उठा मगर हाथ से उसे दबाने की कोशिश करता हुआ वो बोला, “मेम साहब! बोतलें कहाँ हैं? मैं जाता हूँ, कहीं आप मुझे चक्कर में मत फसा देना।”
“ना.. मेरे .. राजा.. यूँ दिल तोड़ कर मत जाना तुझे मेरी कसम! आजा पट्ठे इसे बोतलें ही समझ ले और जल्दी से अपनी ओट लगा कर इसे ले ले।” चुदने को मचले जा रही थी ज्वाला देवी इस समय। “तू नहा कर आया है न?” वो फिर बोली।
“जी .. जी। हाँ। मगर नहाने से आपका मतलब?” चौंक कर बिरजु बोला।
“बिना नहाये धोये मज़ा नहीं आता राजा इसलिये पूछ रही थी।” ज्वाला देवी बैठ कर उससे बोली।
“तो आप मुझसे गन्दा काम करवाने के लिये इस अकेले कमरे में लाये हो।” तेवर बदलते हुए बिरजु ने कहा।
“हाय मेरे शेर तू इसे गन्दा काम कहता है! इस काम का मज़ा आता ही अकेले में है, क्या तूने कभी किसी की नहीं ली है?” होंठो पर जीभ फ़िरा कर ज्वाला देवी ने उससे कहा और उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास खींच लिया। फिर हाफ़ पैन्ट पर से ही उसका लंड मुट्ठी में भींच लिया। बिरजु भी अब ताव में आ गया और उसकी कोली भर कर चूचियों को भींचते हुए गुलाबी गाल पीता-पीता वो बोला, “चोद दूँगा बीवीजी, कम मत समझना। हाय रे कल से ही मैं तो तुम्हारी चूत के लिये मरा जा रहा था।” शिकार को यूँ ताव में आते देख ज्वाला देवी की खुशी का ठिकाना ही न रहा, वो तबियत से बिरजु को गाल पिला रही थी।
आज बिरजु भी नहा धो कर मंजन करके साफ़ सुथरा हो कर आया था। उसकी चुदाई की इच्छा, मदहोश, बदमाश औरत को देख-देख कर जरूरत से ज्यादा भड़क उठी। उसकी जगह अगर कोई भी जवान लंड का मालिक इस समय होता तो वो भी ज्वाला देवी जैसी अल्हड़ व चुदक्कड़ औरत को बिना चोदे मानने वाला नहीं था।
“नाम क्या है रे तेरा?” सिसकते हुए ज्वाला देवी ने पूछा।
“इस समय नाम-वाम मत पूछो बीवीजी! आह आज अपने लंड की सारी आग निकाल लेने दो मुझे। आह.. आजा।” बिरजु लिपट-लिपट कर ज्वाला देवी की चूचियों व गाल की माँ चोदे जा रहा था। उसकी चौड़ी छाती व मजबूत हाथों में कसी हुई ज्वाला देवी भी बेहद सुख अनुभव कर रही थी। जिस बेरहमी से अपने बदन को रगड़वा-रगड़वा कर वह चुदवाना चाह रही थी आज इसी प्रकार का मर्द उसे छप्पर फ़ाड़ कर उसे मुफ़्त में ही मिल गया था। बिरजु की हाफ़ पैन्ट में हाथ डाल कर उसका १८ साल का खूँखार व तगड़ा लंड मुट्ठी में भींच कर ज्वाला देवी अचम्भे से बोली, “हाय। हाय.. ये लंड है.. या घिया.. कद्दु.. उफ़्फ़.. क्यों.. रे.. अब तक कितनी को मज़ा दे चुका है तू अपने इस कद्दु से..”
“हाय.. मेम साहब.. क्या पूछ लिया ... तुमने .. पुच्च.. पुच.. एक बार मौसी की ली थी बस.. वरना अब तक मुट्ठी मार-मार कर अपना पानी निकालता आया हूँ.. हाँ.. मेरी अब उसी मौसी की लड़की पर नज़र जरूर है.. उसे भी दो चार रोज़ के अंदर चोद कर ही रहुँगा। हाय.. तेरी चूत कैसी है.. आह.. इसे तो आज मैं खूब चाटुँगा.. हाय.. आ.. लिपट जा..” बिरजु ने ज्वाला देवी की साड़ी उपर उठा कर उसकी टाँगों में टाँगे फसा कर जाँघों से जाँघें रगड़ने का काम शुरु कर दिया था। अपनी चिकनी व गुदाज़ जाँघों पर बिरजु की बालों वाली खुरदरी व मर्दानी जाँघों के घस्से खा-खा कर ज्वाला देवी की चूत के अंदर जबरदस्त खलबली मच उठी थी। जाँघ से जाँघ टकरवाने में अजीब गुदगुदी व पूरा मज़ा भी उसे आ रहा था। “अब मेम साहब.. ज़रा नंगी हो जाओ तो मैं चुदाई शुरु करूँ।” एक हाथ ज्वाला देवी की भारी गाँड पर रख कर बिरजु बोला।
“वाहह.. रे.. मर्द.. बड़ा गरम है तू तो.. मैं.. तो उस दिन .. रद्दियाँ तुलवाते तुलवाते ही तुझे ताड़.. गयी.. थी.. रे..! आहह। तेरा लंड... बड़ा.. मज़ा.. देगा.. आज आहह.. तू रद्दियों के पैसे वापिस ले जाना.. प्यारे.. आज.. से सारी.. रद्दियाँ.. तुझे.. मुफ़्त दिया... करूँगी मेरी प्यारे आहह चल हट परे ज़रा नंगी हो जाने दे.. आह तू भी पैन्ट उतार मेरे शेर” ज्वाला देवी उसके गाल से गाल रगड़ती हुई बके जा रही थी। अपने बदन को छुड़ा कर ज्वाला देवी पलंग पर सैंडल पहने हुए ही खड़ी हो गयी और बोली, “मेरी साड़ी का पल्लु पकड़ और खींच इसे।” उसका कहना था कि बिरजु ने साड़ी का पल्ला पकड़ उसे खींचना शुरु कर दिया। अब ज्वाला देवी घुमती जा रही थी और बिरजु साड़ी खींचता जा रहा था। यूँ लग रहा था मानो दुर्योधन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा हो। कुछ सेकेन्ड बाद साड़ी उसके बदन से पूरी उतर गयी तो बिरजु बोला, “लाओ मैं तुम्हारे पेटिकोट का नाड़ा खोलूँ।”
“परे हटो, पराये मर्दो से कपड़े नहीं उतरवाती, बदमाश कहीं का।” अदा से मुस्कराते हुए अपने आप ही पेटिकोट का नाड़ा खोलते हुए वो बोली। उसकी बात पर बिरजु धीरे से हंसने लगा और अपनी पैन्ट उतारने लगा तो पेटिकोट को पकड़े-पकड़े ही ज्वाला देवी बोली, “क्यों हंसता है तू, सच-सच बता, तुझे मेरी कसम।”
“अब मेम साहब, आपसे छिपाना ही क्या है? बात दरअसल ये है की वैसे तो तुम मुझसे चूत मरवाने जा रही हो और कपड़े उतरवाते हुए यूँ बन रही हो, जैसे कभी लंड के दीदार ही तुमने नहीं किये। कसम तेरी ! हो तुम खेली खायी औरत।” हीरो की तरह गर्दन फ़ैला कर डायलॉग सा बोल रहा था बिरजु। उसका जवाब देते हुए ज्वाला देवी बोली, “अबे चूतिये! अगर खेली खायी नहीं होती तो तुझे पटा कर तेरे सामने चूत खोल कर थोड़े ही पड़ जाती। रही कपड़े उतरवाने की बात तो इसमें एक राज़ है, तू भी सुनना चाहता है तो बोल।” वो पेटिकोट को अपनी टाँगों से अलग करती हुई बोले जा रही थी। पेटिकोट के उतरते ही चूत नंगी हो उठी और बिरजु पैन्ट उतार कर खड़ा लंड पकड़ कर उस पर टूट पड़ा। और उसकी चूत पर ज़ोर-ज़ोर से लंड रख कर वो घस्से मारता हुआ एक चूची को दबा-दबा कर पीने लगा। वो चूत की छटा देख कर आपे से बाहर हो उठा था उसके लंड में तेज़ झटके लगने चालू होने लगे थे। “अरे रे इतनी जल्दी.. मत कर। ओह रे मान जा।”
“बात बहुत करती हो मेमसाब, आहह चोद दूँगा आज ।” पूरी ताकत से उसे जकड़ कर बिरजु उसकी कोली भर कर फिर चूची पीने लगा। शायद चूची पीने में ज्यादा ही लुफ़्त आ रहा था उसे। चूत पर लंड के यूँ घस्से पड़ने से ज्वाला देवी भी गर्मा गयी और उसने लंड हाथ से पकड़ कर चूत के दरवाज़े पर लगा कर कहा, “मार.. लफ़ंगे मार। कर दे सारा अंदर... हाय देखूँ कितनी जान है तेरे में.. आहह खाली बोलता रहता है चोद दूँगा चोद दूँगा। चल चोद मुझे।”
“आहह ये ले हाय फाड़ दूँगा।” पूरी ताकत लगा कर जो बिरजु ने चूत में लंड घुसाना शुरु किया कि ज्वाला देवी की चूत मस्त हो गयी। उसका लंड उसके पति के लंड से किसी भी मायने में कम नहीं था ज्वाला देवी यूँ तड़पने लगी जैसे आज ही उसकी सील तोड़ी जा रही हो। अपनी टाँगों से बिरजु की कमर जकड़ कर वो गाँड बिस्तर पर रगड़ते हुए मचल कर बोली, “हाय उउफ़्फ़ फाड़ डालेगा तू। आह यँऽऽऽ मत कर… तेरा.. तो दो के बराबर है... निकाल साले फ़ट गयी उफ़्फ़ मार दिया।” इस बार तो बिरजु ने हद ही कर डाली थी। अपने पहलवानी बदन की सारी ताकत लगा कर उसने इतना दमदार धक्का मारा था कि फ़च्च्च्च के तेज़ आवाज़ ज्वाला देवी की चूत के मुँह से निकल उठी थी। अपनी बलशाली बाँहों से लचकीले और गुद्देदार जिस्म को भी वो पूर्ण ताकत से भींचे हुए था। गोरे गाल को चूसते हुए बड़ी तेज़ी से जब उसने चूत में लंड पेलना शुरु कर दिया तो एक जबरदस्त मज़े ने ज्वाला देवी को आ घेरा। हैवी लंड से चुदते हुए बिरजु से लिपट-लिपट कर उसकी नंगी कमर सहलाते हुए ज्वाला देवी ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियाँ छोड़ने लगी। चूत में फस-फस कर जा रहे लंड ने उसके मज़े में चार चाँद लगा डाले थे। अपनी भारी गाँड को उछालते हुए तथा जाँघों को बिरजु की खुरदुरी खाल से रगड़ते हुए वो तबियत से चुद रही थी। मखमली औरत की चूत में लंड डाल कर बिरजु को अपनी किस्मत का सितारा बुलंद होता हुआ लग रहा था। उँच-नीच, जात-पात, गरीब-अमीर के सारे भेद इस मज़ेदार चुदाई ने खत्म कर डाले थे।
यह कहानी है सक्सेना परिवार की। इस परिवार के मुखिया, सुदर्शन सक्सेना, ४५ वर्ष के आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं। आज से २० साल पहले उनका विवाह ज्वाला से हुआ था। ज्वाला जैसा नाम वैसी ही थी। वह काम (सैक्स) की साक्षात दहकती ज्वाला थी। विवाह के समय ज्वाला २० वर्ष की थी। विवाह के १ साल बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया। आज वह लड़की, रंजना १९ साल की है और अपनी मां की तरह ही आग का एक शोला बन चुकी है। ज्वाला देवी नहा रही हैं और रंजना सोफ़े पर बैठी पढ़ रही है और सुदर्शन जी अपने ऑफिस जा चुके हैं। तभी वातावरण की शांति भंग हुई। “कॉपी, किताब, अखबार वाली रद्दी..!!!!!!” ये आवाज़ जैसे ही ज्वाला देवी के कानों में पड़ी तो उसने बाथरूम से ही चिल्ला कर अपनी १९ वर्षीय जवान लड़की, रंजना से कहा, “बेटी रंजना! ज़रा रद्दी वाले को रोक, मैं नहा कर आती हूँ।”
“अच्छा मम्मी!” रंजना जवाब दे कर भागती हुई बाहर के दरवाजे पर आ कर चिल्लाई।
“अरे भाई रद्दी वाले! अखबार की रद्दी क्या भाव लोगे?”
“जी बीबी जी! ढाई रुपये किलो।” कबाड़ी लड़के बिरजु ने अपनी साईकल कोठी के कम्पाउन्ड मे ला कर खड़ी कर दी।
“ढाई तो कम हैं, सही लगाओ।” रंजना उससे भाव करते हुए बोली।
“आप जो कहेंगी, लगा दूँगा।” बिरजु होठों पर जीभ फ़िरा कर और मुसकुरा कर बोला।
इस दो-अर्थी डायलॉग को सुन कर तथा बिरजु के बात करने के लहजे को देख कर रंजना शरम से पानी पानी हो उठी, और नज़रें झुका कर बोली, “तुम ज़रा रुको, मम्मी आती है अभी।” बिरजु को बाहर ही खड़ा कर रंजना अंदर आ गयी और अपने कमरे में जा कर ज़ोर से बोली, “मम्मी मुझे कॉलेज के लिये देर हो रही है, मैं तैयार होती हूँ, रद्दी वाला बाहर खड़ा है।”
“बेटा! अभी ठहर तू, मैं नहा कर आती ही हूँ।” ज्वाला देवी ने फिर चिल्ला कर कहा। अपने कमरे में बैठी रंजना सोच रही थी की कितना बदमाश है ये रद्दी वाला, “लगाने” की बात कितनी बेशर्मी से कर रहा था पाजी! वैसे “लगाने” का अर्थ रंजना अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि एक दिन उसने अपने डैड्डी को मम्मी से बेडरूम में ये कहते सुना था, “ज्वाला टाँग उठाओ, मैं अब लगाऊँगा।” और रंजना ने यह अजीब डायलॉग सुन कर उत्सुकता से मम्मी के बेडरूम में झांक कर जो कुछ उस दिन अंदर देखा था, उसी दिन से “लगाने” का अर्थ बहुत ही अच्छी तरह उसकी समझ में आ गया था। कई बार उसके मन में भी “लगवाने” की इच्छा पैदा हुई थी मगर बेचारी मुकद्दर की मारी खूबसुरत चूत की मालकिन रंजना को “लगाने वाला” अभी तक कोई नहीं मिल पाया था।
जल्दी से नहा धो कर ज्वाला देवी सिर्फ़ गाउन और ऊँची ऐड़ी की चप्पल पहन कर बाहर आयी, उसके बाल इस समय खुले हुए थे, नहाने के कारण गोरा रंग और भी ज्यादा दमक उठा था। यूँ लग रहा था मानो काली घटाओं में से चांद निकल आया है। एक ही बच्चा पैदा करने की वजह से ४० वर्ष की उम्र में भी ज्वाला देवी २५ साल की जवान लौन्डिया को भी मात कर सकती थी। बाहर आते ही वो बिरजु से बोली, “हाँ भाई! ठीक-ठीक बता, क्या भाव लेगा?”
“मेम साहब! ३ रुपये लगा दूँगा, इससे ऊपर मैं तो क्या कोई भी नहीं लेगा।” बिरजु गम्भीरता से बोला।
“अच्छा ! तू बरामदे में बैठ मैं लाती हूँ” ज्वाला देवी अंदर आ गयी, और रंजना से बोली, “रंजना बेटा! ज़रा थोड़े थोड़े अखबार ला कर बरमदे में रख।”
“अच्छा मम्मी लाती हूँ” रंजना ने कहा। रंजना ने अखबार ला कर बरामदे में रखने शुरु कर दिये थे, और ज्वाला देवी बाहर बिरजु के सामने ऊँची ऐड़ी की चप्पलों पे उकड़ू बैठ कर बोली, “चल भाई तौल” बिरजु ने अपना तराज़ु निकाल और एक एक किलो के बट्टे से उसने रद्दी तौलनी शुरु कर दी। एकाएक तौलते तौलते उसकी निगाह उकड़ु बैठी ज्वाला देवी की धुली धुलाई चूत पर पड़ी तो उसके हाथ कांप उठे। ज्वाला देवी के यूँ उकड़ु बैठने से टांगे तो सारी ढकी रहीं मगर अपने खुले फ़ाटक से वो बिल्कुल ही अनभिज्ञ थीं। उसे क्या पता था कि उसकी शानदार चूत के दर्शन ये रद्दी वाला तबियत से कर रहा था। उसका दिमाग तो बस तराज़ु की डन्डी व पलड़ों पर ही लगा हुआ था। अचानक वो बोली, “भाई सही तौल”
“लो मेम साहब” बिरजु हड़बड़ा कर बोला। और अब आलम ये था की एक-एक किलो में तीन तीन पाव तौल रहा था बिरजु। उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था, हाथ और भी ज्यादा कंपकंपाते जा रहे थे, तथा आंखें फ़ैलती जा रही थीं उसकी। उसकी १८ वर्षीय जवानी चूत देख कर धधक उठी थी। मगर ज्वाला देवी अभी तक नहीं समझ पा रही थी कि बिरजु रद्दी कम और चूत ज्यादा तौल रहा है। और जैसे ही बिरजु के बराबर रंजना आ कर खड़ी हुई और उसे यूँ कांपते तराज़ु पर कम और सामने ज्यादा नज़रें गड़ाये हुए देखा तो उसकी नज़रें भी अपनी मम्मी की खुली चूत पर जा ठहरीं। ये दृष्य देख कर रंजना का बुरा हाल हो गया, वो खांसते हुए बोली, “मम्मी.. आप उठिये, मैं तुलवाती हूँ।”
“तू चुप कर! मैं ठीक तुलवा रही हूँ।”
“मम्मी! समझो न, ओफ़्फ़! आप उठिये तो सही।” और इस बार रंजना ने ज़िद्द करके ज्वाला देवी के कंधे पर चिकोटी काट कर कहा तो वो कुछ-कुछ चौंकी। रंजना की इस हरकत पर ज्वाला देवी ने सरसरी नज़र से बिरजु को देखा और फिर झुक कर जो उसने अपने नीचे को देखा तो वो हड़बड़ा कर रह गयी। फ़ौरन खड़ी हो कर गुस्से और शरम मे हकलाते हुए वो बोली, “देखो भाई! ज़रा जल्दी तौलो।” इस समय ज्वाला देवी की हालत देखने लायक थी, उसके होंठ थरथरा रहे थे, कनपट्टियां गुलाबी हो उठी थीं तथा टांगों में एक कंपकपी सी उठती उसे लग रही थी। बिरजु से नज़र मिलाना उसे अब दुभर जान पड़ रहा था। शरम से पानी-पानी हो गयी थी वो।
बेचारे बिरजु की हालत भी खराब हुई जा रही थी। उसका लंड हाफ़ पैंट में खड़ा हो कर उछालें मार रहा था, जिसे कनखियों से बार-बार ज्वाला देवी देखे जा रही थी। सारी रद्दी फ़टाफ़ट तुलवा कर वो रंजना की तरफ़ देख कर बोली, “तू अंदर जा, यहाँ खड़ी खड़ी क्या कर रही है?” मुँह में अंगुली दबा कर रंजना तो अंदर चली गयी और बिरजु हिसाब लगा कर ज्वाला देवी को पैसे देने लगा। हिसाब में १० रुपये फ़ालतू वह घबड़ाहट में दे गया था। और जैसे ही वो लंड जाँघों से दबाता हुआ रद्दी की पोटली बांधने लगा कि ज्वाला देवी उससे बोली, “क्यों भाई कुछ खाली बोतलें पड़ी हैं, ले लोगे क्या?”
“अभी तो मेरी साईकल पर जगह नहीं है मेम साहब, कल ले जाऊँगा।” बिरजु हकलाता हुआ बोला।
“तो सुन, कल ११ बजे के बाद ही आना।”
“जी आ जाऊँगा।” वो मुसकुरा कर बोला था इस बार। रद्दी की पोटली को साईकल के कैरीयर पर रख कर बिरजु वहां से चलता बना मगर उसकी आंखों के सामने अभी तक ज्वाला देवी का खुला फ़ाटक यानि की शानदार चूत घूम रही थी। बिरजु के जाते ही ज्वाला देवी रुपये ले कर अंदर आ गयी। ज्वाला देवी जैसे ही रंजना के कमरे में पहुंची तो बेटी की बात सुन कर वो और ज्यादा झेंप उठी थी। रंजना ने आंखे फ़ाड़ कर उससे कहा, “मम्मी! आपकी वो वाली जगह वो रद्दी वाला बड़ी बेशर्मी से देखे जा रहा था।”
“चल छोड़! हमारा क्या ले गया वो, तू अपना काम कर, गन्दी गन्दी बातें नहीं सोचा करते, जा कॉलेज जा तू।”
थोड़ी देर बाद रंजना कॉलेज चली गयी और ज्वाला देवी अपनी चूची को मसलती हुई फ़ोन की तरफ़ बढ़ी। अपने पति सुदर्शन सक्सेना का नम्बर डायल कर वो दूसरी तरफ़ से आने वाली आवाज़ का इंतज़ार करने लगी। अगले पल फ़ोन पर एक आवाज़ उभरी
“येस सुदर्शन हेयर”
“देखिये ! आप फ़ौरन चले आइये, बहुत जरूरी काम है मुझे”
“अरे ज्वाला ! तुम्हे ये अचानक मुझसे क्या काम आन पड़ा... अभी तो आ कर बैठा हूँ, ऑफिस में बहुत काम पड़े हैं, आखिर माजरा क्या है?”
“जी। बस आपसे बातें करने को बहुत मन कर आया है, रहा नहीं जा रहा, प्लीज़ आ जाओ ना।”
“सॉरी ज्वाला ! मैं शाम को ही आ पाऊँगा, जितनी बातें करनी हो शाम को कर लेना, ओके।”
अपने पति के व्यवहार से वो तिलमिला कर रह गयी। एक कमसिन नौजवान लौंडे के सामने अनभिज्ञता में ही सही; अपनी चूत प्रदर्शन से वो बेहद कामातूर हो उठी थी। चूत की ज्वाला में वो झुलसी जा रही थी इस समय। वो रसोई घर में जा कर एक बड़ा सा बैंगन उठा कर उसे निहारने लगी। उसके बाद सीधे बेडरूम में आ कर वो बिस्तर पर लेट गयी, गाउन ऊपर उठा कर उसने टांगों को चौड़ाया और चूत के मुँह पर बैंगन रख कर ज़ोर से उसे दबाया।
“हाइ.. उफ़्फ़.. मर गयी... अहह.. आह। ऊहह...” आधा बैंगन वो चूत में घुसा चुकी थी। मस्ती में अपने निचले होंठ को चबाते हुए उसने ज़ोर ज़ोर से बैंगन द्वारा अपनी चूत चोदनी शुरु कर ही डाली। ५ मिनट तक लगातार तेज़ी से वो उसे अपनी चूत में पेलती रही, झड़ते वक्त वो अनाप शनाप बकने लगी थी। “आहह। मज़ा। आ.. गया..हाय। रद्दी वाले.. तू ही चोद .. जाता .. तो .. तेरा .. क्या .. बिगड़ .. जाता .. उफ़। आह..ले.. आह.. क्या लंड था तेरा ... तुझे कल दूँगी .. अहह.. साले पति देव ... मत चोद मुझे ... आह.. मैं .. खुद काम चला लूँगी .. अहह!”
ज्वाला देवी इस समय चूत से पानी छोड़ती जा रही थी, अच्छी तरह झड़ कर उसने बैंगन फेंक दिया और चूत पोंछ कर गाउन नीचे कर लिया। मन ही मन वो बुदबुदा उठी थी, “साले पतिदेव, गैरों को चोदने का वक्त है तेरे पास, मगर मेरे को चोदने के लिये तेरे पास वक्त नहीं है, शादी के बाद एक लड़की पैदा करने के अलावा तूने किया ही क्या है, तेरी जगह अगर कोई और होता तो अब तक मुझे ६ बच्चों की मां बना चुका होता, मगर तू तो हफ़्ते में दो बार मुझे मुश्किल से चोदता है, खैर कोई बात नहीं, अब अपनी चूत की खुराक का इन्तज़ाम मुझे ही करना पड़ेगा।”
ज्वाला देवी ने फ़ैसला कर लिया कि वो इस गठीले शरीर वाले रद्दी वाले के लंड से जी भर कर अपनी चूत मरवायेगी। उसने सोचा जब साला चूत के दर्शन कर ही गया है तो फिर चूत मराने में ऐतराज़ ही क्या?
उधर ऑफिस में सुदर्शन जी बैठे हुए अपनी खूबसुरत जवान स्टेनो मिस शाज़िया के खयालो में डूबे हुए थे। ज्वाला के फ़ोन से वे समझ गये थे की साली अधेढ़ बीवी की चूत में खुजली चल पड़ी होगी। यह सोच ही उनका लंड खड़ा कर देने के लिये काफ़ी थी। उन्होने घन्टी बजा कर चपरासी को बुलाया और बोले, “देखो भजन! जल्दी से शाज़िया को फ़ाईल ले कर भेजो।”
“जी बहुत अच्छा साहब!” भजन तेज़ी से पलटा और मिस शाज़िया के पास आ कर बोला, “बड़े साहब ने फ़ाईल ले कर आपको बुलाया है।” मिस शाज़िया फ़ुर्ती से एक फ़ाईल उठा कर खड़ी हो गयी और अपनी स्कर्ट ठीक ठाक कर तेज़ चाल से अपनी सैंडल खटखटाती उस कमरे में जा घुसी जिस के बाहर लिखा था “बिना आज्ञा अंदर आना मना है!” कमरे में सुदर्शन जी बैठे हुए थे। शाज़िया २२ साल की मस्त लड़की उनके पूराने स्टाफ़ खान साहब की लड़की थी। खान साहब की उमर हो गयी और वे रिटायर हो गये। रिटायर्मेंट के वक्त खान साहब ने सुदर्शनजी से विनती की कि वे उनकी लड़की को अपने यहाँ सर्विस पे रख लें। शाज़िया को देखते ही सुदर्शनजी ने फ़ौरन हाँ कर दी। शाज़िया बड़ी मनचली लड़की थी। वो सुदर्शनजी की प्रारम्भिक छेड़छाड़ का हँस कर साथ देने लगी। और फिर नतीजा यह हुआ की वह उनकी एक रखैल बन कर रह गयी।
“आओ मिस शाज़िया! ठहरो दरवाजा लॉक कर आओ, हरी अप।” शाज़िया को देखते ही उचक कर वो बोले। दरवाजा लॉक कर शाज़िया जैसे ही सामने वाली कुर्सी पर बैठने लगी तो सुदर्शन जी अपनी पैंट की ज़िप खोल कर उसमें हाथ डाल अपना फ़नफ़नाता हुआ खूंटे की तरह तना हुआ लंड निकाल कर बोले, “ओह नो शाज़िया! जल्दी से अपनी पैंटी उतार कर हमारी गोद में बैठ कर इसे अपनी चूत में ले लो।”
“सर! आज सुबह-सुबह! चक्कर क्या है डीयर?” खड़ी हो कर अपनी स्कर्ट को उपर उठा पैंटी टांगों से बाहर निकालते हुए शाज़िया बोली।
“बस डार्लिंग मूड कर आया!, हरी अप! ओह।” सुदर्शन जी भारी गाँड वाली बेहद खूबसूरत शाज़िया की चूत में लंड डालने को बेताब हुए जा रहे थे।
“लो आती हूँ मॉय लव” शाज़िया उनके पास आयी और उसने अपनी स्कर्ट ऊपर उठा कर कुर्सी पर बैठे सुदर्शन जी की गोद में कुछ आधी हो कर इस अंदाज़ में बैठना शुरु किया कि खड़ा लंड उसकी चूत के मुँह पर आ लगा था।
“अब ज़ोर से बैठो, लंड ठीक जगह लगा है” सुदर्शन जी ने शाज़िया को आज्ञा दी। वो उनकी आज्ञा मान कर इतनी ज़ोर से चूत को दबाते हुए लंड पर बैठने लगी कि सारा लंड उसकी चूत में उतरता हुआ फ़िट हो चुका था। पूरा लंड चूत में घुसवा कर बड़े इतमिनान से गोद में बैठ अपनी गाँड को हिलाती हुई दोनों बाँहें सुदर्शन जी के गले में डाल कर वो बोली, “आह.. बड़ा.. अच्छा.. लग। रहा .. है सर... ओफ़्फ़। ओह.. मुझे.. भींच लो.. ज़ोरर.. से।”
फिर क्या था, दोनों तने हुए मम्मों को उसके खुले गले के अंदर हाथ डाल कर उन्होने पकड़ लिया और सफ़ाचट खुशबुदार बगलों को चूमते हुए उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ते हुए वो बोले, “डार्लिंग!! तुम्हारी चूत मुझे इतनी अच्छी लगती है की मैं अपनी बीवी की चूत को भी भूल चुका हूँ, आह! अब ज़ोर ज़ोर..उछलो डार्लिंग।”
“सर चूत तो हर औरत के पास एक जैसी ही होती है, बस चुदवाने के अंदाज़ अलग अलग होते हैं, मेरे अंदाज़ आपको पसन्द आ गये हैं, क्यों?”
“हाँ । हाँ अब उछलो जल्दी से ..” और फिर गोद में बैठी शाज़िया ने जो सिसक सिसक कर लंड अपनी चूत में पिलवाना शुरु किया तो सुदर्शन जी मज़े में दोहरे हो उठे, उन्होने कुर्सी पर अपनी गाँड उछाल उछाल कर चोदना शुरु कर दिया था। शाज़िया ज़ोर से उनकी गर्दन में बाँहें डाले हिला-हिला कर झूले पर बैठी झोंटे ले रही थी। हर झोंटे में उसकी चूत पूरा-पूरा लंड निगल रही थी। सुदर्शन जी ने उसका सारा मुँह चूस-चूस कर गीला कर डाला था। अचानक वो बहुत ज़ोर-ज़ोर से लंड को अपनी चूत के अंदर बाहर लेते हुई बोल उठी थी, “उफ़्फ़.. आहा.. बड़ा मज़ा आ .. रह.. है .. आह.. मैं गयी..”
सुदर्शन जी मौके की नज़ाकत को ताड़ गये और शाज़िया की पीछे से कोली भर कर कुर्सी से उठ खड़े हुए और तेज़ तेज़ शॉट मारते हुए बोले, “लो.. मेरी । जान.. और .. आह लो.. मैं .. भी .. झड़ने वाला हूँ.. ओफ़। आहह लो.. जान.. मज़ा.. आ.. गया..” और शाज़िया की चूत से निकलते हुए रज से उनका वीर्य जा टकराया। शाज़िया पीछे को गाँड पटकती हुई दोनो हाथों से अपने कूल्हे भींचती हुई झड़ रही थी। अच्छी तरह झड़ कर सुदर्शन जी ने उसकी चूत से लंड निकाल कर कहा, “जल्दी से पेशाब कर पैंटी पहन लो, स्टाफ़ के लोग इंतज़ार कर रहे होंगे, ज्यादा देर यहाँ तुम्हारा रहना ठीक नहीं है।” सुदर्शन जी के केबिन में बने पेशाब घर में शाज़िया ने मूत कर अपनी चूत रुमाल से खूब पोंछी और पैंटी पहन कर बोली, “आपकी दराज में मेरी लिप्स्टिक और पाउडर पड़ा है, ज़रा दे दिजीये प्लीज़,” सुदर्शन जी ने निकाल कर शाज़िया को दिया। इसके बाद शाज़िया तो सामने लगे शीशे में अपना मेकअप ठीक करने लगी, और सुदर्शन जी पेशाब घर में मूतने के लिये उठ खड़े हुए।
कुछ देर में ही शाज़िया पहले की तरह ताज़ी हो उठी थी, तथा सुदर्शनजी भी मूत कर लंड पैंट के अंदर कर ज़िप बंद कर चुके थे।
चुदाई इतनी सावधानी से की गयी थी की न शाज़िया की स्कर्ट पर कोई धब्बा पड़ा था और न सुदर्शनजी की पैंट कहीं से खराब हुई। एलर्ट हो कर सुदर्शन जी अपनी कुर्सी पर आ बैठे और शाज़िया फ़ाईल उठा, दरवाजा खोल उनके केबिन से बाहर निकल आयी। उसके चेहरे को देख कर स्टाफ़ का कोई भी आदमी नहीं ताड़ सका कि साली अभी-अभी चुदवा कर आ रही है। वो इस समय बड़ी भोली भाली और स्मार्ट दिखायी पड़ रही थी।
उधर बिरजु ने आज अपना दिन खराब कर डाला था। घर आ कर वो सीधा बाथरूम में घुस गया और दो बार ज्वाला देवी की चूत का नाम ले कर मुट्ठी मारी। मुट्ठी मारने के बाद भी वो उस चूत की छवि अपने जेहन से उतारने में अस्मर्थ रहा था। उसे तो असली खाल वाली जवान चूत मारने की इच्छा ने आ घेरा था। मगर उसके चारों तरफ़ कोई चूत वाली ऐसी नहीं थी जिसे चोद कर वो अपने लंड की आग बुझा सकता।
शाम को जब सुदर्शन जी ऑफिस से लौट आये। तो ज्वाला देवी चेहरा फ़ुलाये हुए थी। उसे यूँ गुस्से में भरे देख कर वो बोले, “लगता है रानी जी आज कुछ नाराज़ हैं हमसे!” “जाइये! मैं आपसे आज हर्गिज़ नहीं बोलूँगी।” ज्वाला देवी ने मुँह फ़ुला कर कहा, और काम में जुट गयी। रात को सुदर्शन जी डबल बिस्तर पर लेटे हुए थे। इस समय भी उन्हे अपनी पत्नी नहीं बल्कि शाज़िया की चूत की याद सता रही थी। सारे काम निपटा कर ज्वाला देवी ने रंजना के कमरे में झांक कर देखा और उसे गहरी नींद में सोये देख कर वो कुछ आश्वस्त हो कर सीधी पति के बराबर में जा लेटी। एक दो बार आंखे मूंदे पड़े पति को उसने कनखियों से झांक कर देखा और अपनी साड़ी उतार कर एक तरफ़ रख कर वो चुदने को मचल उठी। दिन भर की भड़ास वो रात भर में निकालने को उतावली हुई जा रही थी। कमरे में हल्की रौशनी नाईट लैम्प की थी। सुदर्शन जी की लुंगी की तरफ़ ज्वाला देवी ने आहिस्ता से हाथ बढ़ा ही दिया और कच्छे रहित लंड को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी। चौंक कर सुदर्शन जी उठ बैठे। यूँ पत्नी की हरकत पर झल्ला कर उन्होंने कहा, “ज्वाला अभी मूड नहीं है, छोड़ो इसे..”
“आज आपका मूड मैं ठीक करके ही रहुँगी, मेरी इच्छा का आपको ज़रा भी खयाल नहीं है लापरवाह कहीं के।” ज्वाला देवी सुदर्शन को ज़ोर से दबा कर अपने बदन को और भी आगे कर बोली। उसको यूँ चुदाई के लिये मचलते देख कर सुदर्शन जी का लंड भी सनसना उठा था। टाईट ब्लाऊज़ में से झांकते हुए आधे चूचे देख कर अपने लंड में खून का दौरा तेज़ होता हुआ जान पड़ रहा था। भावावेश में वो उससे लिपट पड़े और दोनों चूचियों को अपनी छाती पर दबा कर वो बोले, “लगता है आज कुछ ज्यादा ही मूड में हो डार्लिंग।”
“तीन दिन से आपने कौन से तीर मारे हैं, मैं अगर आज भी चुपचाप पड़ जाती तो तुम अपनी मर्ज़ी से तो कुछ करने वाले थे नहीं, मज़बूरन मुझे ही बेशर्म बनना पड़ रहा है।” अपनी दोनों चूचियों को पति के सीने से और भी ज्यादा दबाते हुए वो बोली।
“तुम तो बेकार में नाराज़ हो जाती हो, मैं तो तुम्हे रोज़ाना ही चोदना चाहता हूँ, मगर सोचता हूँ लड़की जवान हो रही है, अब ये सब हमे शोभा नहीं देता।” सुदर्शन जी उसके पेटिकोट के अंदर हाथ डालते हुए बोले। पेटिकोट का थोड़ा सा ऊपर उठना था कि उसकी गदरायी हुई गोरी जाँघ नाईट लैम्प की धुंधली रौशनी में चमक उठी। चिकनी जाँघ पर मज़े ले-ले कर हाथ फ़िराते हुए वो फिर बोले, “हाय! सच ज्वाला! तुम्हे देखते ही मेरा खड़ा हो जाता है, आहह! क्या गज़ब की जांघें हैं तुम्हारी पुच्च..!” इस बार उन्होंने जाँघ पर चुम्बी काटी थी। मर्दाने होंठ की अपनी चिकनी जाँघ पर यूँ चुम्बी पड़ती महसूस कर ज्वाला देवी की चूत में सनसनी और ज्यादा बुलंदी पर पहुँच उठी। चूत की पत्तियां अपने आप फ़ड़फ़ड़ा कर खुलती जा रही थीं। ये क्या? एकाएक सुदर्शन जी का हाथ खिसकता हुआ चूत पर आ गया। चूत पर यूँ हाथ के पड़ते ही ज्वाला देवी के मुँह से तेज़ सिसकारी निकल पड़ी।
“हाय। मेरे ... सनम.. ऊहह.. आज्ज्ज.. मुझे .. एक .. बच्चे .. कि.. माँ.. और.. बना .. दो..” और वो मचलती हुई ज्वाला को छोड़ अलग हट कर बोले, “ज्वाला! क्या बहकी-बहकी बातें कर रही हो, अब तुम्हारे बच्चे पैदा करने की उम्र नहीं रही, रंजना के ऊपर क्या असर पड़ेगा इन बातों का, कभी सोचा है तुमने?”
“सोचते-सोचते तो मेरी उम्र बीत गयी और तुमने ही कभी नहीं सोचा की रंजना का कोई भाई भी पैदा करना है।”
“छोड़ो ये सब बेकार की बातें, रंजना हमारी लड़की ही नहीं लड़का भी है। हम उसे ही दोनो का प्यार देंगे।” दोबार ज्वाला देवी की कोली भर कर उसे पुचकारते हुए वो बोले, उन्हे खतरा था कि कहीं इस चुदाई के समय ज्वाला उदास न हो जाये। अबकी बार वो तुनक कर बोली, “चलो बच्चे पैदा मत करो, मगर मेरी इच्छाओं का तो खयाल रखा करो, बच्चे के डर से तुम मेरे पास सोने तक से घबड़ाने लगे हो।”
“आइन्दा ऐसा नहीं होगा, मगर वादा करो की चुदाई के बाद तुम गर्भ निरोधक गोली जरूर खा लिया करोगी।”
“हाँ.. मेरे .. मालिक..! मैं ऐसा ही करूँगी पर मेरी प्यास जी भर कर बुझाते रहिएगा आप भी।” ज्वाला देवी उनसे लिपट पड़ी, उसे ज़ोर से पकड़ अपने लंड को उसकी गाँड से दबा कर वो बोले, “प्यास तो तुम्हारी मैं आज भी जी भर कर बुझाऊँगा मेरी जान .. पुच्च… पुच… पुच…” लगातार उसके गाल पर कई चुम्मी काट कर रख दी उन्होंने। इन चुम्बनों से ज्वाला इतनी गरम हो उठी की गाँड पर टकराते लंड को उसने हाथ में पकड़ कर कहा, “इसे जल्दी से मेरी गुफ़ा में डालो जी।”
“हाँ। हाँ। डालता .. हूँ.. पहले तुम्हे नंगी करके चुदाई के काबिल तो बना लूँ जान मेरी।” एक चूची ज़ोर से मसल डाली थी सुदर्शन जी ने, सिसक ही पड़ी थी बेचारी ज्वाला। सुदर्शन जी ने ज्वाला की कमर कस कर पकड़ी और आहिस्ता से अंगुलियां पेटिकोट के नाड़े पर ला कर जो उसे खींचा कि कूल्हों से फ़िसल कर गाँड नंगी करता हुआ पेटिकोट नीचे को फ़िसलता चला गया।
“वाह। भाई.. वाह.. आज तो बड़ी ही लपलपा रही है तुम्हारी! पुच्च!” मुँह नीचे करके चूत पर हौले से चुम्बी काट कर बोले। “अयी.. नहीं.. उफ़्फ़्फ़.. ये.. क्या .. कर दिया.. आ… एक.. बार.. और .. चूमो.. राजा.. अहह म्म्म स्स” चूत पर चुम्मी कटवाना ज्वाला देवी को इतना मज़ेदार लगा कि दोबारा चूत पर चुम्मी कटवाने के लिये वो मचल उठी थी।
“जल्दी नहीं रानी! खूब चूसुँगा आज मैं तुम्हारी चूत, खूब चाट-चाट कर पीयुँगा इसे मगर पहले अपना ब्लाऊज़ और पेटिकोट एकदम अपने बदन से अलग कर दो।”
“हाय रे ..मैं तो आधी से ज्यादा नंगी हो गयी सैंया.. तुम इस साली लुंगी को क्यों लपेटे पड़े हुए हो?” एक ज़ोरदार झटके से ज्वाला देवी पति की लुंगी उतारते हुए बोली। लुंगी के उतरते ही सुदर्शन जी का डंडे जैसा लंबा व मोटा लंड फ़नफ़ना उठा था। उसके यूँ फ़ुंकार सी छोड़ना देख कर ज्वाला देवी के तन-बदन में चुदाई और ज्यादा प्रज्वलित हो उठी। वो सीधी बैठ गयी और सिसक-सिसक कर पहले उसने अपना ब्लाऊज़ उतारा और फिर पेटिकोट को उतारते हुए वो लंड की तरफ़ देखते हुए मचल कर बोली, “हाय। अगर.. मुझे.. पता.. होता.. तो मैं .. पहले .. ही .. नंगी.. आ कर लेट जाती आप के पास.. आहह.. लो.. आ.. जाओ.. अब.. देर क्या है.. मेरी.. हर.. चीज़... नंगी हो चुकी है सैयां...!”
पेटिकोट पलंग से नीचे फेंक कर दोनों बाँहें पति की तरफ़ उठाते हुए वो बोली। सुदर्शन जी अपनी बनियान उतार कर बोले, “मेरा खयाल है पहले तुम्हारी चूत को मुँह में लेकर खूब चूसूँ” “हाँ। हाँ.. मैं भी यही चाहती हूँ जी.. जल्दी से .. लगालो इस पर अपना मुँह।” दोनो हाथों से चूत की फांक को चौड़ा कर वो सिसकारते हुए बोली।
“मेरा लंड भी तुम्हे चूसना पड़ेगा ज्वाला डार्लिंग।” अपनी आंखों की भवें ऊपर चढ़ाते हुए बोले। “चूसूँगी। मैं.. चूसूँगी.. ये तो मेरी ज़िन्दगी है ... आह.. इसे मैं नहीं चूसूँगी तो कौन चूसेगा, मगर पहले .. आहह आओओ.. न..” अपने होंठों को अपने आप ही चूसते हुए ज्वाला देवी उनके फ़नफ़नाते हुए लंड को देख कर बोली। उसका जी कर रह था कि अभी खड़ा लंड वो मुँह में भर ले और खूब चूसे मगर पहले वो अपनी चूत चुसवा-चुसवा कर मज़े लेने के चक्कर में थी। लंड चुसवाने का वादा ले सुदर्शन जी घुटने पलंग पर टेक दोनों हाथों से ज्वाला की जांघें कस कर पकड़ झुकते चले गये। और अगले पल उनके होंठ चूत की फांक पर जा टिके थे। लेटी हुई ज्वाला देवी ने अपने दोनों हाथ अपनी दोनों चूचियों पर जमा कर सिग्नल देते हुए कहा, “अब ज़ोर से .. चूसो.. जी.. यूँ.. कब.. तक होंठ रगड़ते रहोगे.. आह.. पी जाओ इसे।” पत्नी की इस मस्ती को देख कर सुदर्शन जी ने जोश में आ कर जो चूत की फाँकों पर काट-काट कर उन्हे चूसना शुरु किया तो वो वहशी बन उठी। खुशबुदार, बिना झांटों की दरार में बीच-बीच में अब वो जीभ फंसा देते तो मस्ती में बुरी तरह बेचैन सी हो उठती थी ज्वाला देवी। चूत को उछाल-उछाल कर वो पति के मुँह पर दबाते हुए चूत चुसवाने पर उतर आयी थी।
“ए..ऐए.. नहीं.. ई मैं.. नहीं.. आये..ए.. ये क्य.. आइइइ.. मर... जाऊँगी आहह। दाना मत चूसो जी.. उउफ़्फ़्फ़... आहह नहींईं..” सुदर्शन जी ने सोचा कि अगर वे चन्द मिनट और चूत चूसते रहे तो कहीं चूत पानी ही न छोड़ दे। कई बार ज्वाला का पानी वे जीभ से चूत को चाट-चाट कर निकाल चुके थे। इसलिये चूत से मुँह हटाना ही अब उन्होंने ज्यादा फायदेमंद समझा। जैसे ही चूत से मुँह हटा कर वो उठे तो ज्वाला देवी गीली चूत पर हाथ मलते हुए बोली, “ओह.. चूसनी क्यों बंद कर दी जी।”
“मैंने रात भर तुम्हारी चूत ही पीने का ठेका तो ले नहीं लिया, टाईम कम है, तुम्हे मेरा लंड भी चूसना है, मुझे तुम्हारी चूत भी मारनी है और बहुत से काम करने हैं, अब तुम अपनी न सोच मेरी सोचो यानि मेरा लंड चूसो, आयी बात समझ में।” सुदर्शन जी अपना लंड पकड़ कर उसे हिलाते हुए बोले, उनके लंड का सुपाड़ा इस समय फूल कर सुर्ख हुआ जा रहा था।
“मैं.. पीछे हटने वाली नहीं हूँ.. लाओ दो इसे मेरे मुँह में।” तुरंत अपना मुँह खोलते हुए ज्वाला देवी ने कहा। उसकी बात सुन कर सुदर्शन जी उसके मुँह के पास आ कर बैठ गये और एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उसके खुले मुँह में सुपाड़ा डाल कर वो बोले, “ले.. चूस.. चूस इसे साली लंड खोर हरामी।”
“उइए..उइई.. अहह..उउम्म।” आधा लंड मुँह में भर कर “उउम.. उउहहह” करती हुई वो उसे पीने लगी थी। लंड के चारों तरफ़ झांटों का झुर्मुट उसके मुँह पर घस्से से छोड़ रह था। जिससे एक मज़ेदार गुदगुदी से उठती हुई वो महसूस कर रही थी, चिकना व ताकतवर लंड चूसने में उसे बड़ा ही जायकेदार लग रहा था। जैसे-जैसे वो लंड चूसती जा रही थी, सुपाड़ा मुँह के अंदर और ज्यादा उछल-उछल कर टकरा रहा था। जब लंड की फुंकारें ज्यादा ही बुलंद हो उठीं तो सुदर्शन जी ने स्वयं ही अपना लंड उसके मुँह से निकाल कर कहा, “मैं अब एक पल भी अपने लंड को काबू में नहीं रख सकता ज्वाला.. जल्दी से इसे अपनी चूत में घुस जाने दो।”
“वाह.. मेरे सैंया… मैं भी तो यही चाह रही हूँ। आओ.. मेरी जाँघों के पास बैठो जी...” इस बार अपनी दोनों टाँगें ज्वाला देवी ऊपर उठा कर चुदने को पूर्ण तैयार हो उठी थी। सुदर्शन जी दोनों जाँघों के बीच में बैठे और उन्होंने लपलपाती गीली चूत के फड़फड़ाते छेद पर सुपाड़ा रख कर दबाना शुरु किया। अच्छी तरह लंड जमा कर एक टाँग उन्होंने ज्वाला देवी से अपने कंधे पर रखने को कहा, वो तो थी ही तैयार! फ़ौरन उसने एक टाँग फ़ुर्ती से पति के कंधे पर रख ली। चूत पर लगा लंड उसे मस्त किये जा रहा था। ज्वाला देवी दूसरी टाँग पहले की तरह ही मोड़े हुए थी। सुदर्शन जी ने थोड़ा सा झुक कर अपने हाथ दोनों चूचियों पर रख कर दबाते हुए ज़ोर लगा कर लंड जो अंदर पेलना शुरु किया कि फ़च की आवाज़ के साथ एक साँस में ही पूरा लंड उसकी चूत सटक गयी। मज़े में सुदर्शन जी ने उसकी चूचियां छोड़ ज़ोर से उसकी कोली भर कर धच-धच लंड चूत में पेलते हुए अटैक चालू कर दिये। ज्वाला देवी पति के लंड से चुदते हुए मस्त हुई जा रही थी। मोटा लंड चूत में घुसा बड़ा ही आराम दे रहा था। वो भी पति के दोनों कंधे पकड़ उछल-उछल कर चुद रही थी तथा मज़े में आ कर सिसकती हुई बक-बक कर रही थी, “आहह। ओहह। शाब्बास.. सनम.. रोज़.. चोदा करो.. वाहह तुम्म.. वाकय.. सच्चे... पति.. हो .. चोदो और चोदो.... ज़ोरर... से चोदो... उम्म्म... आ.. मज़ा.. आ.. रहा.. आ.. है जी.. और तेज़्ज़.... अहह..!” सुदर्शन जी मस्तानी चूत को घोटने के लिये जी जान एक किये जा रहे थे। वैसे तो उनका लंड काफ़ी फँस-फँस कर ज्वाला देवी की चूत में घुस रहा था मगर जो मज़ा शादी के पहले साल उन्हे आया था वो इस समय नहीं आ पा रहा था। खैर चूत भी तो अपनी ही चोदने के अलावा कोई चारा ही नहीं था।
उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो चूत नहीं मार रहे हैं बल्कि अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे हैं, न जाने उनका मज़ा क्यों गायब होता जा रहा था। वास्तविकता ये थी की शाज़िया की नयी-नयी जवान चूत जिसमें उनका लंड अत्यन्त टाईट जाया करता था उसकी याद उन्हे आ गयी थी। उनकी स्पीड और चोदने के ढंग में फ़र्क महसूस करती हुई ज्वाला देवी चुदते-चुदते ही बोली, “ओह.. ये। ढीले..से.. क्यों.. पड़.. रहे हैं.. आप.. उफ़्फ़.. मैं .. कहती हूँ.... ज़ोर.. से .. करो... आहह .. क्यों.. मज़ा .. खराब.. किये जा रहे हो जीइइइ... उउफ़्फ़..!”
“मेरे बच्चों की मां .. आहह.. ले.. तुझे.. खुश.. करके ही हटुँगा... मेरी.. अच्छी.. रानी.. ले.. और ले.. तेरी... चूत का... मैं अपने... लंड… से .... भोसड़ा... बना.. चुका हूँ… रन्डी.. और.. ले.. बड़ी अच्छी चूत हाय.. आह.. ले.. चोद.. कर रख दूँगा.. तुझे...” सुदर्शन जी बड़े ही करारे धक्के मार-मार कर अन्ट शन्ट बकते जा रहे थे। अचानक ज्वाला देवी बहुत ज़ोर से उनसे लिपट लिपट कर गाँड को उछालते हुए चुदने लगी। सुदर्शन जी भी उसका गाल पीते-पीते तेज़ रफ़्तार से उसे चोदने लगे थे। तभी ज्वाला देवी की चूत ने रज की धारा छोड़नी शुरु कर दी।
“ओह.. पति..देव... मेरे.. सैयां.. ओह.. देखो.. देखो.. हो.. गया..ए.. मैं.. गई...” और झड़ती हुई चूत पर मुश्किल से ८-१० धक्के और पड़े होंगे की सुदर्शन जी का लंड भी ज़ोरदार धार फेंक उठा। उनके लंड से वीर्य निकल-निकल कर ज्वाला देवी की चूत में गिर रहा था। मज़े में आ कर दोनों ने एक दूसरे को जकड़ डाला था। जब दोनों झड़ गये तो उनकी जकड़न खुद ढीली पड़ती चली गयी।
कुछ देर आराम में लिपटे हुए दोनों पड़े रहे और ज़ोर-ज़ोर से हांफ़ते रहे। करीब ५ मिनट बाद सुदर्शन जी, ज्वाला देवी की चूत से लंड निकाल कर उठे और मूतने के लिये बेडरूम से बाहर चले गये। ज्वाला देवी भी उठ कर उनके पीछे-पीछे ही चल दी थी। थोड़ी देर बाद दोनों आ कर बिस्तर पर लेट गये तो सुदर्शन जी बोले, “अब! मुझे नींद आ रही है डिस्टर्ब मत करना।”
“तो क्या आप दोबारा नहीं करेंगे?” भूखी हो कर ज्वाला देवी ने पूछा।
“अब बहुत हो गया… इतना ही काफ़ी है, तुम भी सो जाओ।” उन्होने लेटते हुए कहा। वास्तव में वे अब दोबारा इसलिये चुदाई नहीं करना चाहते थे क्योंकि शाज़िया के लिये भी थोड़ा बहुत मसाला उन्हे लंड में रखना जरूरी था। उनकी बात सुन कर ज्वाला देवी लेट तो गयी परंतु मन ही मन ताव में आ कर अपने आप से ही बोली, “मत चोद साले, कल तेरी ये अमानत रद्दी वाले को न सौंप दूँ तो ज्वाला देवी नाम नहीं मेरा। कल सारी कसर उसी से पूरी कर लुँगी साले।” सुदर्शन जी तो जल्दी ही सो गये थे, मगर ज्वाला देवी काफ़ी देर तक चूत की ज्वाला में सुलगती रही और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद उसकी आंखें झपकने पर आयी। वह भी नींद के आगोश में डूबती जा रही थी।
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अगले दिन ठीक ११ बजे बिरजु की आवाज़ ज्वाला देवी के कानो में पड़ी तो खुशी से उसका चेहरा खिल उठा। भागी-भागी वो बाहर के दरवाजे पर आयी। तब तक बिरजु भी ठीक उसके सामने आ कर बोला, “मेम साहब ! वो बोतल ले आओ, ले लुँगा।”
“सायकल इधर साईड में खड़ी करके अंदर आ जाओ और खुद ही उठा लो।” वो बोली।
“जी आया अभी” बिरजु सायकल बरामदे के बराबर में खड़ी कर ज्वाला देवी के पीछे पीछे आ गया। इस समय वह सोच रहा था की शायद आज भी बीवीजी की चूत के दर्शन हो जायें। मगर दिल पर काबू किये हुए था। ज्वाला देवी आज बहुत लंड मार दिखायी दे रही थी। पति व बेटी के जाते ही वह चुदाई की सारी तैयारी कर चुकी थी। उसे अब किसी का डर न रहा था। वो इस तरह तैयार हुई थी जैसे किसी पार्टी में जा रही हो। गुलाबी साड़ी और हल्के ब्लाऊज़ में उसका बदन और ज्यादा खिल उठा था। साथ ही उसने बहुत सुंदर मेक-अप किया था। हाथों में गुलाबी चुड़ियाँ और पैरों में चाँदी की पायल और सफेद रंग की ऊँची एड़ी की सैण्डल उसकी गुलाबी साड़ी से बहुत मेल खा रहे थे। ब्लाऊज़ के गले में से उसकी चूचियों का काफ़ी भाग झाँकता हुआ बिरजु साफ़ देख रहा था। चूचियाँ भींचने को उसका दिल मचलता जा रहा था। तभी ज्वाला देवी उसे अंदर ला कर दरवाजा बंद करते हुए बोली, “अब दूसरे कमरे में चलो, बोतलें वहीं रखी हैं।”
“जी, जी, मगर आपने दरवाजा क्यों बंद कर दिया?” बिरजु बेचारा हकला सा गया। घर की सजावट और ज्वाला देवी के इस अंदाज़ से वह हड़बड़ा सा गया। वो डरता हुआ वहीं रुक गया और बोला, “देखिये मेम साहब ! बोतलें यहीं ले आइये, मेरी सायकल बाहर खड़ी है।”
“अरे आओ न, तुझे सायकल मैं और दिलवा दूँगी।” बिरजु की बाँह पकड़ कर उसे जबरदस्ती अपने बेडरूम पर खींच लिया ज्वाला देवी ने। इस बार सारी बातें एकाएक वो समझ गया, मगर फिर भी वो कांपते हुए बोला, “देखिये, मैं गरीब आदमी हूँ जी, मुझे यहाँ से जाने दो, मेरे बाबा मुझे घर से निकाल देंगें।”
“अरे घबड़ाता क्यों है, मैं तुझे अपने पास रख लुँगी, आजा तुझे बोतलें दिखाऊँ, आजा ना।” ज्वाला देवी बिस्तर पर लेट कर अपनी बाँहें उसकी तरफ़ बढ़ा कर बड़े ही कामुक अंदाज़ में बोली।
“मैं… मगर.. बोतलें कहाँ है जी..” बिरजु बुरी तरह हड़बड़ा उठा।
“अरे ! लो ये रही बोतलें, अब देखो इसे जी भर कर मेरे जवान राजा।” अपनी साड़ी व पेटिकोट उपर उठा कर सफ़ाचट चूत दिखाती हुई ज्वाला देवी बड़ी बेहयाई से बोली।
वो मुस्कराते हुए बिरजु की मासूमियत पर झूम-झूम जा रही थी। चूत के दिखाते ही बिरजु का लंड हाफ़ पैन्ट में ही खड़ा हो उठा मगर हाथ से उसे दबाने की कोशिश करता हुआ वो बोला, “मेम साहब! बोतलें कहाँ हैं? मैं जाता हूँ, कहीं आप मुझे चक्कर में मत फसा देना।”
“ना.. मेरे .. राजा.. यूँ दिल तोड़ कर मत जाना तुझे मेरी कसम! आजा पट्ठे इसे बोतलें ही समझ ले और जल्दी से अपनी ओट लगा कर इसे ले ले।” चुदने को मचले जा रही थी ज्वाला देवी इस समय। “तू नहा कर आया है न?” वो फिर बोली।
“जी .. जी। हाँ। मगर नहाने से आपका मतलब?” चौंक कर बिरजु बोला।
“बिना नहाये धोये मज़ा नहीं आता राजा इसलिये पूछ रही थी।” ज्वाला देवी बैठ कर उससे बोली।
“तो आप मुझसे गन्दा काम करवाने के लिये इस अकेले कमरे में लाये हो।” तेवर बदलते हुए बिरजु ने कहा।
“हाय मेरे शेर तू इसे गन्दा काम कहता है! इस काम का मज़ा आता ही अकेले में है, क्या तूने कभी किसी की नहीं ली है?” होंठो पर जीभ फ़िरा कर ज्वाला देवी ने उससे कहा और उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास खींच लिया। फिर हाफ़ पैन्ट पर से ही उसका लंड मुट्ठी में भींच लिया। बिरजु भी अब ताव में आ गया और उसकी कोली भर कर चूचियों को भींचते हुए गुलाबी गाल पीता-पीता वो बोला, “चोद दूँगा बीवीजी, कम मत समझना। हाय रे कल से ही मैं तो तुम्हारी चूत के लिये मरा जा रहा था।” शिकार को यूँ ताव में आते देख ज्वाला देवी की खुशी का ठिकाना ही न रहा, वो तबियत से बिरजु को गाल पिला रही थी।
आज बिरजु भी नहा धो कर मंजन करके साफ़ सुथरा हो कर आया था। उसकी चुदाई की इच्छा, मदहोश, बदमाश औरत को देख-देख कर जरूरत से ज्यादा भड़क उठी। उसकी जगह अगर कोई भी जवान लंड का मालिक इस समय होता तो वो भी ज्वाला देवी जैसी अल्हड़ व चुदक्कड़ औरत को बिना चोदे मानने वाला नहीं था।
“नाम क्या है रे तेरा?” सिसकते हुए ज्वाला देवी ने पूछा।
“इस समय नाम-वाम मत पूछो बीवीजी! आह आज अपने लंड की सारी आग निकाल लेने दो मुझे। आह.. आजा।” बिरजु लिपट-लिपट कर ज्वाला देवी की चूचियों व गाल की माँ चोदे जा रहा था। उसकी चौड़ी छाती व मजबूत हाथों में कसी हुई ज्वाला देवी भी बेहद सुख अनुभव कर रही थी। जिस बेरहमी से अपने बदन को रगड़वा-रगड़वा कर वह चुदवाना चाह रही थी आज इसी प्रकार का मर्द उसे छप्पर फ़ाड़ कर उसे मुफ़्त में ही मिल गया था। बिरजु की हाफ़ पैन्ट में हाथ डाल कर उसका १८ साल का खूँखार व तगड़ा लंड मुट्ठी में भींच कर ज्वाला देवी अचम्भे से बोली, “हाय। हाय.. ये लंड है.. या घिया.. कद्दु.. उफ़्फ़.. क्यों.. रे.. अब तक कितनी को मज़ा दे चुका है तू अपने इस कद्दु से..”
“हाय.. मेम साहब.. क्या पूछ लिया ... तुमने .. पुच्च.. पुच.. एक बार मौसी की ली थी बस.. वरना अब तक मुट्ठी मार-मार कर अपना पानी निकालता आया हूँ.. हाँ.. मेरी अब उसी मौसी की लड़की पर नज़र जरूर है.. उसे भी दो चार रोज़ के अंदर चोद कर ही रहुँगा। हाय.. तेरी चूत कैसी है.. आह.. इसे तो आज मैं खूब चाटुँगा.. हाय.. आ.. लिपट जा..” बिरजु ने ज्वाला देवी की साड़ी उपर उठा कर उसकी टाँगों में टाँगे फसा कर जाँघों से जाँघें रगड़ने का काम शुरु कर दिया था। अपनी चिकनी व गुदाज़ जाँघों पर बिरजु की बालों वाली खुरदरी व मर्दानी जाँघों के घस्से खा-खा कर ज्वाला देवी की चूत के अंदर जबरदस्त खलबली मच उठी थी। जाँघ से जाँघ टकरवाने में अजीब गुदगुदी व पूरा मज़ा भी उसे आ रहा था। “अब मेम साहब.. ज़रा नंगी हो जाओ तो मैं चुदाई शुरु करूँ।” एक हाथ ज्वाला देवी की भारी गाँड पर रख कर बिरजु बोला।
“वाहह.. रे.. मर्द.. बड़ा गरम है तू तो.. मैं.. तो उस दिन .. रद्दियाँ तुलवाते तुलवाते ही तुझे ताड़.. गयी.. थी.. रे..! आहह। तेरा लंड... बड़ा.. मज़ा.. देगा.. आज आहह.. तू रद्दियों के पैसे वापिस ले जाना.. प्यारे.. आज.. से सारी.. रद्दियाँ.. तुझे.. मुफ़्त दिया... करूँगी मेरी प्यारे आहह चल हट परे ज़रा नंगी हो जाने दे.. आह तू भी पैन्ट उतार मेरे शेर” ज्वाला देवी उसके गाल से गाल रगड़ती हुई बके जा रही थी। अपने बदन को छुड़ा कर ज्वाला देवी पलंग पर सैंडल पहने हुए ही खड़ी हो गयी और बोली, “मेरी साड़ी का पल्लु पकड़ और खींच इसे।” उसका कहना था कि बिरजु ने साड़ी का पल्ला पकड़ उसे खींचना शुरु कर दिया। अब ज्वाला देवी घुमती जा रही थी और बिरजु साड़ी खींचता जा रहा था। यूँ लग रहा था मानो दुर्योधन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा हो। कुछ सेकेन्ड बाद साड़ी उसके बदन से पूरी उतर गयी तो बिरजु बोला, “लाओ मैं तुम्हारे पेटिकोट का नाड़ा खोलूँ।”
“परे हटो, पराये मर्दो से कपड़े नहीं उतरवाती, बदमाश कहीं का।” अदा से मुस्कराते हुए अपने आप ही पेटिकोट का नाड़ा खोलते हुए वो बोली। उसकी बात पर बिरजु धीरे से हंसने लगा और अपनी पैन्ट उतारने लगा तो पेटिकोट को पकड़े-पकड़े ही ज्वाला देवी बोली, “क्यों हंसता है तू, सच-सच बता, तुझे मेरी कसम।”
“अब मेम साहब, आपसे छिपाना ही क्या है? बात दरअसल ये है की वैसे तो तुम मुझसे चूत मरवाने जा रही हो और कपड़े उतरवाते हुए यूँ बन रही हो, जैसे कभी लंड के दीदार ही तुमने नहीं किये। कसम तेरी ! हो तुम खेली खायी औरत।” हीरो की तरह गर्दन फ़ैला कर डायलॉग सा बोल रहा था बिरजु। उसका जवाब देते हुए ज्वाला देवी बोली, “अबे चूतिये! अगर खेली खायी नहीं होती तो तुझे पटा कर तेरे सामने चूत खोल कर थोड़े ही पड़ जाती। रही कपड़े उतरवाने की बात तो इसमें एक राज़ है, तू भी सुनना चाहता है तो बोल।” वो पेटिकोट को अपनी टाँगों से अलग करती हुई बोले जा रही थी। पेटिकोट के उतरते ही चूत नंगी हो उठी और बिरजु पैन्ट उतार कर खड़ा लंड पकड़ कर उस पर टूट पड़ा। और उसकी चूत पर ज़ोर-ज़ोर से लंड रख कर वो घस्से मारता हुआ एक चूची को दबा-दबा कर पीने लगा। वो चूत की छटा देख कर आपे से बाहर हो उठा था उसके लंड में तेज़ झटके लगने चालू होने लगे थे। “अरे रे इतनी जल्दी.. मत कर। ओह रे मान जा।”
“बात बहुत करती हो मेमसाब, आहह चोद दूँगा आज ।” पूरी ताकत से उसे जकड़ कर बिरजु उसकी कोली भर कर फिर चूची पीने लगा। शायद चूची पीने में ज्यादा ही लुफ़्त आ रहा था उसे। चूत पर लंड के यूँ घस्से पड़ने से ज्वाला देवी भी गर्मा गयी और उसने लंड हाथ से पकड़ कर चूत के दरवाज़े पर लगा कर कहा, “मार.. लफ़ंगे मार। कर दे सारा अंदर... हाय देखूँ कितनी जान है तेरे में.. आहह खाली बोलता रहता है चोद दूँगा चोद दूँगा। चल चोद मुझे।”
“आहह ये ले हाय फाड़ दूँगा।” पूरी ताकत लगा कर जो बिरजु ने चूत में लंड घुसाना शुरु किया कि ज्वाला देवी की चूत मस्त हो गयी। उसका लंड उसके पति के लंड से किसी भी मायने में कम नहीं था ज्वाला देवी यूँ तड़पने लगी जैसे आज ही उसकी सील तोड़ी जा रही हो। अपनी टाँगों से बिरजु की कमर जकड़ कर वो गाँड बिस्तर पर रगड़ते हुए मचल कर बोली, “हाय उउफ़्फ़ फाड़ डालेगा तू। आह यँऽऽऽ मत कर… तेरा.. तो दो के बराबर है... निकाल साले फ़ट गयी उफ़्फ़ मार दिया।” इस बार तो बिरजु ने हद ही कर डाली थी। अपने पहलवानी बदन की सारी ताकत लगा कर उसने इतना दमदार धक्का मारा था कि फ़च्च्च्च के तेज़ आवाज़ ज्वाला देवी की चूत के मुँह से निकल उठी थी। अपनी बलशाली बाँहों से लचकीले और गुद्देदार जिस्म को भी वो पूर्ण ताकत से भींचे हुए था। गोरे गाल को चूसते हुए बड़ी तेज़ी से जब उसने चूत में लंड पेलना शुरु कर दिया तो एक जबरदस्त मज़े ने ज्वाला देवी को आ घेरा। हैवी लंड से चुदते हुए बिरजु से लिपट-लिपट कर उसकी नंगी कमर सहलाते हुए ज्वाला देवी ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियाँ छोड़ने लगी। चूत में फस-फस कर जा रहे लंड ने उसके मज़े में चार चाँद लगा डाले थे। अपनी भारी गाँड को उछालते हुए तथा जाँघों को बिरजु की खुरदुरी खाल से रगड़ते हुए वो तबियत से चुद रही थी। मखमली औरत की चूत में लंड डाल कर बिरजु को अपनी किस्मत का सितारा बुलंद होता हुआ लग रहा था। उँच-नीच, जात-पात, गरीब-अमीर के सारे भेद इस मज़ेदार चुदाई ने खत्म कर डाले थे।